बढ़ रही है कोदा की मांग

बढ़ रही है कोदा की मांग, इस अनाज की सबस बड़ी खासियत यह है कि बंजर जमीन में भी उगाया जा सकता है। ऑंग्ल भाषा में इसे फिंगर मिलेट्स कहा जाता है। जबसे पहाडों से लोग पलायन करने लगे हैं तब से इसकी उपज में काफी कमी होने लगी। #ओम प्रकाश उनियाल
जो मंडुआ उत्तराखंड में उपेक्षित हो रहा था अब उसकी मांग दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। उत्तराखंड में मंडुआ को कोदा कहा जाता है। यह मोटा अनाज है। इसको पीस कर जो आटा बनता है उसे ‘चून’ (मंडुवे का आटा) कहा जाता है। जो कि बहुत ही पौष्टिक होता है। क्योंकि यह ग्लूकोन रहित होता है और इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
चून से पहाड़ों में रोटी तो बनायी ही जाती थी इसके अलावा गर्म पानी में डालकर खूब घोटा जाता था जिसको बाड़ी (एक किस्म से हलवा लेकिन स्वाद में फीकापन) कहा जाता था। फाणू या चैंस्वणी (गहथ या उड़द की दाल पीसकर बनाया गया पकवान) में गोले बनाकर डुबोकर स्वाद से खाया जाता था। बिना इन दालों के भी आसानी से खाया जाता था। खांसी, जुकाम व गले की खरास, दर्द में सेकन के तौर पर ‘बाड़ी’ काफी फायदेमंद होता था।
इस अनाज की सबस बड़ी खासियत यह है कि बंजर जमीन में भी उगाया जा सकता है। ऑंग्ल भाषा में इसे फिंगर मिलेट्स कहा जाता है। जबसे पहाडों से लोग पलायन करने लगे हैं तब से इसकी उपज में काफी कमी होने लगी। फिर भी कई किसान इसकी पैदावर कर रहे हैं। बदलते समय के साथ-साथ मंडुए की कुकीज, मोमोज, छोटे बच्चों के लिए आहार जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं।
यहां तक कि शादी-ब्याह या अन्य समारोहों में चून की रोटी अर घी, पहाड़ का पिसा नमक, गुड़ या कंडली (बिच्छू घास) का साग के इसका स्वाद लेने की मांग खासी बढ़ने लगी है। उत्तराखंड सरकार ने इस साल विभिन्न सहकारी और किसान संघों के जरिए उत्तराखण्ड के किसानों से 3100 मीट्रिक टन से अधिक मंडुआ खरीदा है। इस साल किसानों को मंडुआ पर ₹4200 प्रति कुंतल का समर्थन मूल्य भी दिया गया है।
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