अपने ही राज्य में असुरक्षित हैं पहाड़ के युवक-युवतियां
अपने ही राज्य में असुरक्षित हैं पहाड़ के युवक-युवतियां, अंकिता भंडारी कांड से पहले भी एक अन्य बेटी के साथ जो घटा वह घटना दबकर ही रह गयी। अब विपिन रावत नामक युवक को कुछ रसूखदारों ने… पढ़ें देहरादून (उत्तराखण्ड) से ओम प्रकाश उनियाल की रिपोर्ट…
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के साधन उपलब्ध न होने के कारण पहाड़ के युवक-युवतियों को बड़े शहरों या पहाड़ के मैदानी छोटे शहरों की तरफ रुख करना पड़ता है। जहां पर उन्हें छोट-मोटा रोजगार मिल ही जाता है। अपना एवं अपने परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उठाकर दूसरे शहर में टिकना भी बड़ा मुश्किल होता है। फिर भी किसी न किसी तरह अपने सपनों को पंख लगाने के लिए संघर्षरत रहते हैं। अपने घर-गांव से मीलों दूर जहां एकदम अपना भी कोई नहीं होता, न किसी का सहारा।
ऐसे में यदि उनके साथ कुछ ऐसी अनहोनी घट जाए जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती, तो जरा सोचिए क्या बीतती होगी उसके परिवार पर। दु:खों का पहाड़ टूट पड़ता है। परिजनों की आशाओं पर पानी फिर जाता है। एक क्षण में सबकुछ छिन्न-भिन्न। पहाड़ के अधिकतर युवक-युवतियां भोले स्वभाव के होते हैं। छल-कपट, और वैर-भाव से दूर। मेहनतकश लेकिन झिझकपन। उत्तराखंड के मैदानी शहरों में भी पहाड़ के युवक-युवतियां सुरक्षित नहीं हैं।
पहाड़ की बेटी अंकिता भंडारी जिस कदर रसूखदारों का शिकार बनी उससे राज्य सरकार की भी थू-थू हो रही है। इतने समय बाद भी उसे न्याय न मिलने से हमारी न्यायिक व कानून-व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। अंकिता भंडारी कांड से पहले भी एक अन्य बेटी के साथ जो घटा वह घटना दबकर ही रह गयी। अब विपिन रावत नामक युवक को कुछ रसूखदारों ने देहरादून में जरा-सी बात को लेकर इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जहां कल उसकी मौत हो गयी।
इस प्रकार की घटनाओं से पहाड़वासियों में आक्रोश तो फैल ही रहा है हरेक युवक-युवती के परिजनों के माथे पर चिंता की लकीरें भी खिंच रही हैं। यह हाल तो उत्तराखंड जैसे राज्य का है। तो जो अन्य राज्यों में हैं वहां किस पर भरोसा किया जा सकता है? हालांकि, दिल्ली जो कि देश की राजधानी है वहां पर भी उत्तराखंड के युवक-युवतियां असुरक्षा के दायरे में जी रहे हैं। पहाड़ के युवक-युवतियों के साथ भी पिछले सालों में ऐसी घटनाएं घटी हैं जिनमें उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।
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