उसकी कविता
डॉ. कविता नन्दन
उसकी कविता के शब्द
शब्दों की रगों में प्रवाहमान संवेदनाएँ
संवेदना-शून्य होते हुए समाज के सम्मुख
पूरी तरह नग्न भावों की मांसल गुलाबी देह पर उगे,
महीन किंतु नुकीले विचार-रोम
चुनौती बन कर अंतस में चुभ रहे थे ; मैंने
महसूस किया कि
गिद्धों की टोलियाँ उसे अनदेखा कर रही हैं
आँखें सभी की खुली हुई हैं लेकिन
उसे कोई देखना, सुनना, चूमना
यहाँ तक कि छूना भी नहीं चाहता
संभवतः
मर्दवादी सभ्यता के कारण
नपुंसकता के शिकार वंशज
वर्तमान को ऐसे ही जीने का अभ्यास कर रहे हैं
चिंतन की चिता पर
मुझे लिटाने वाली भीड़ मेरे बहुत करीब होकर भी
उस दाह से प्रभावित हुए बिना
महोत्सव मनाने में व्यस्त दिख रही है और
श्मशान बन चुके परिदृश्य में
नपुंसकों पर उँगली उठाने वाले
चिंतन की चिताओं पर लिटाए गए लोग
धू-धू करती लपटों के बीच छटपटा रहे हैं
बिना कुछ कहे कातर
किंतु अशांत भाव से
समय एकटक हमारी ओर देख रहा है, शायद
इन लपटों के बीच
यहीं कहीं, किसी में उम्मीद अभी बाकी है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »कविता नन्दनलेखक एवं कविAddress »द्वारका, नई दिल्लीPublisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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