शिक्षक, विद्यार्थी और व्यक्तित्व का विकास
सुनील कुमार माथुर
जिंदगी में कभी भी किसी के साथ छल – कपट , धोखा व बेईमानी नहीं करनी चाहिए अपितु सेवा का भाव रखकर जरुरतमंद लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए । मन सदैव निर्मल व साफ होना चाहिए ।
एक गांव में चेतन नाम का शिक्षक था । उसने बच्चों को सदैव आदर्श संस्कार दियें और बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व का ध्यान रखता था । उनके घर पर कभी कोई बच्चा पढने के लिए आ जाता तो वो उसे निशुल्क पढा देते थे । बच्चों की शंकाओं का समाधान करते थे । उनके घर पर कोई बच्चा बिना पूर्व सूचना के भी पढने आ जाता था तो वे उस पर नाराज नहीं होते । अपितु प्रेम पूर्वक उनकी समस्या का समाधान करते थे ।
इससे बच्चों में अपने गुरु जी के प्रति लगाव बढ गया और बच्चे गुरू जी को चौहान सर के नाम से पुकारने लगे चूंकि बच्चों को उनके पढाने का तरीका बेहद पसंद आया । चौहान सर भले ही हिन्दी के अध्यापक थे लेकिन उन्हें सभी विषयों का ज्ञान था । यही वजह थी कि स्कूल का परीक्षा परिणाम हर वर्ष अच्छा रहता था ।
एक दिन स्कूल के प्रधानाचार्य जी ने चौहान सर का नाम राज्य स्तरीय सम्मान समारोह के लिए भेज दिया और पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस पर चौहान सर सम्मानित किये गये । तब उन्होंने अपने उद् बोधन में कहा कि यह सम्मान विधा की देवी मां सरस्वती का और मेरे प्यारे विधार्थियों का सम्मान है । चूंकि बच्चों ने पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अध्ययन करके स्कूल और शिक्षक समुदाय का मान व सम्मान बढाया है जिसके लिए शिक्षक समुदाय बच्चों के प्रति आभार व्यक्त करता है।
शिक्षक वहीं है जो पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ बच्चों को सुचारु रुप से पढाये तो बच्चों को स्कूल से बाहर जाकर ट्यूशन करने की कोई जरुरत नहीं है । चूंकि शिक्षकों के कंधों पर ही नये भारत का नव निर्माण करने का भार हैं । अतः शिक्षक अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ निभाये।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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