***
अपराधआपके विचार

स्टडी ड्रग्स, स्मार्ट ड्रग्स और पढ़ाई के नाम पर जानलेवा नशा

वीरेंद्र बहादुर सिंह

‘डाक्टर साहब, मेरी परीक्षाएं नजदीक आ रही हैं। मुझे कोई ऐसी दवा लिख दीजिए कि रात में नींद न आए और मैं पूरी रात थके बगैर पढ़ सकूं।’ डाक्टर ने कई दवाओं के नाम बता कर कहा, “इन्हें ले लेना। पर किसी से कहना मत कि इन दवाओं को लेने के लिए मैं ने कहा है।” आज के यंगस्टर्स स्टडी में अधिक मार्क्स लाने के लिए बहुत ज्यादा प्रेशर में रहते हैं।

अभी तक तो स्मरणशक्ति बढ़ाने के नाम पर तमाम तरह की दवाएं बिक रही थीं। पर अब तो ‘स्टडी ड्रग्स’ के नाम पर छात्रों के स्वास्थ्य को खतरा पहुंचाने वाली तरह-तरह की तरह- दवाएं बिक रही हैं। ब्रिटेन से आई एक जानकारी के बारे में जानकर पूरी दुनिया चौंक उठी है। पूरी दुनिया में जिनका नाम है, उनमें ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी, नोटिंघम यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के छात्र और छात्राएं अधिक मेहनत करने के लिए स्टडी ड्रग्स का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं।

स्टडी ड्रग्स की एक टेबलेट लगभग 2 सौ रुपए की आती है। तमाम दवाएं प्रतिबंधित होने के बावजूद विद्यार्थी प्राप्त कर लेते हैं। सामान्य संयोगों में जो दवाएं एडीएचडी यानी कि अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसआर्डर नाम की मानसिक व्यथा के लिए दी जाती हैं, उन दवाओं को स्टूडेंट स्टडी ड्रग्स के नाम पर लेने लगे हैं। जिस इंसान को इस तरह का मेंटल डिसआर्डर होता है, वह अपने काम या पढ़ाई में पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाता। उसमें कान्फीडेंस का भी अभाव होता है।

किड्स हेल्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह डिसआर्डर की दवा है, जो सीधे ब्रेन पर असर करती है। ब्रेन से एक निश्चित प्रकार का केमिकल रिलीज होता है। जिससे ब्रेन के काम करने की क्षमता बढ़ जाती है। वैसे तो इस तरह की दवाएं डाक्टर की सलाह के बगैर लेनी ही नहीं चाहिए। जबकि स्टूडेंट किसी न किसी तरह मैनेज कर के ये ड्रग्स प्राप्त कर लेते हैं। तमाम स्टडी ड्रग्स तो ऑनलाइन इजी उपलब्ध हैं।

अपने देश में भी स्टडी ड्रग्स का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। अपने यहां तो इस तरह के सर्वे बहुत कम होते हैं। अगर सर्वे किया जाए तो पता चले कि अपने देश में तो ब्रिटेन और दूसरे देशों से ज्यादा स्टडी ड्रग्स का उपयोग हो रहा है। स्टडी ड्रग्स स्मार्ट ड्रग्स के रूप में भी जाना जाता है। ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य देशों में स्टडी ड्रग्स की विक्री जिस तरह बढ़ी है, उसे देखते हुए अब स्टूडेंट्स के लिए नए कानून बनाने पर विचार किया जाने लगा है।

किसी भी स्पोर्ट्स इवेंट के पहले जिस तरह खिलाड़ियों का डोपिंग टेस्ट होता है, उसी तरह भविष्य में स्टूडेंट का भी डोपिंग टेस्ट होने लगे तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। ड्रग्स ले कर परीक्षा देना भी गैरकानूनी घोषित करने के बारे में विचार किया जा रहा है। मेडिकल एक्सपर्ट्स विद्यार्थियों को स्टडी ड्रग्स या स्मार्ट ड्रग्स के खतरों के बारे में समझाते हुए कह रहे हैं कि ‘इन दवाओं का ज्यादा उपयोग जानलेवा साबित हो सकता है।’

ये सब तो उन दवाओं की बात है, जो मेडिकली टेस्टेड हैं और मेंटल डिसआर्डर के इलाज के लिए दी जाती हैं। अपने यहां तो अब नशे के लिए उपयोग में लाया जाने वाला ड्रग्स भी स्टूडेंट बड़ी मात्रा में लेने लगे हैं। अभी जल्दी ही बोब विश्वास नाम की फिल्म आई है। इस फिल्म में हीरो यानी की अभिषेक बच्चन की सौतेली बेटी को उसका दोस्त परीक्षा में अच्छी तरह मेहनत करने के लिए ब्लू नाम का ड्रग्स लेने को कहता है।

वह ट्राई करने के लिए ड्रग्स लेती है। एक बार ड्रग्स लेने के बाद उसका ड्रग्स के बगैर चलता ही नहीं है। एक समय तो वह अपने सौतेले बाप बोब की हत्या करने को तैयार हो जाती है। दिल्ली के एक मनोचिकित्सक के अनुसार, ऐसे तमाम स्टूडेंट ड्रग्स की लपेट में आ गए हैं, जो इस भ्रम में थे कि ड्रग्स लेने से परीक्षा की तैयारी की क्षमता बढ़ जाती है।

मेडिकल के एक स्टूडेंट के अनुसार, मेडिकल के स्टूडेंट में ड्रग्स लेना कोई नई बात नहीं है। वे मात्र पढ़ते समय ही नहीं, इंटर्नशिप करते समय भी ड्रग्स लेते हैं। तमाम स्टूडेंट ऐसे हैं, जो यह कहते हैं की उनके ऊपर इतना अधिक प्रेशर होता है कि बिना ड्रग्स लिए उनका काम ही नहीं चलता है। ड्रग्स लेने में लड़कियां भी पीछे नहीं हैं।

अगर यह कहा जाए कि इस मामले में लड़के-लड़कियों में कोई अंतर नहीं है तो गलत नहीं होगा। अपने बच्चों को पढ़ने के लिए हास्टल भेजने वाले माता-पिता को अब सब से ज्यादा चिंता इसी बात की होती है कि कहीं उनकी संतान ड्रग्स की लती न बन जाए। ऐसे तमाम माता-पिता हैं, जो अपनी संतानों से कहते हैं कि कम मार्क्स आएंगे तो कोई बात नहीं है, पर परीक्षा की तैयारी के नाम पर किसी तरह का ड्रग्स लेने की जरूरत नहीं है।

अब तो लगभग हर शहर के कालेज और हास्टल के पास ड्रग्स मिलने लगा है। शहरों में कुछ स्थान तो ऐसे हैं, जहां मोटरसाइकिल या कार धीमी होते ही पूछ लिया जाता है कि क्या चाहिए? पूछने वाला पुड़िया जेब में ही लिए रहता है। अपने देश सहित पूरी दुनिया के स्टूडेंट में जिस तरह नशे की लत बढ़ती जा रही है, उसे देख कर समाजशास्त्री भी टेंशन में आ गए हैं। उन्होंने सरकारों से अपील की है कि स्टूडेंट् को क्यों इतना अधिक प्रेशर दिया जा रहा है।

अब एजूकेशन सिस्टम पर नए ढ़ंग से विचार करने का समय आ गया है। परीक्षा के टेंशन में बच्चे डिप्रेशन में आ जाते हैं। आत्महत्याओं के मामले भी बढ़ रहे हैं। बातें तो ऐसी भी हो रही हैं कि पढ़ने में मजा आना चाहिए, पर ऐसा होता नहीं है। ऐसे भी तमाम स्टूडेंट हैं, जो पढ़ाई के नाम पर ड्रग्स लेते हैं, तो कुछ रिलैक्स होने के नाम पर नशा करते हैं। कंपटीशन इतना बढ़ता जा रहा है कि स्टूडेंट्स को अधिक से अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। एक समय प्रेशर इतना और बढ़ जाता है कि सहन नहीं होता। ऐसे में ड्रग्स मिल जाए तो अच्छा लगेगा ही।

बहुत से छात्रों का यह सोचना होता है कि स्टडी पूरी होने के बाद ड्रग लेना छोड़ देंगें। पर लत ऐसी लग चुकी होती है कि छूटती नहीं। फिल्म कबीर सिंह की तरह अभी भी ऐसे तमाम डाक्टर हैं, जो शराब या ड्रग्स के बिना ऑपरेशन नहीं कर सकते। इस ड्रग्स के साथ-साथ अब स्टडी ड्रग्स अथवा स्मार्ट ड्रग्स का चलन बढ़ता जा रहा है।

कैरियर बनाने तक तो छात्र फिजिकली खोखले हो जाते हैं। आने वाले समय में दुनिया के सामने एक नया चेलेंज खड़ा होने वाला है कि एजूकेशन को ड्रग्स से कैसे बचाया जाए। अब स्टूडेंट्स को यह।समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि कैरियर बनाने के चक्कर में शरीर न बरबद करें। कैरियर बन जाएगा, पर शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा या कोई बुरी लत रहेगी तो कभी जीवन में सुख का अहसास नहीं होगा।

स्टडी ड्रग्स या स्मार्ट ड्रग्स का यह मायाजाल बहुत व्यापक मात्रा में फैलता जा रहा है। दुख की बात तो यह है कि लड़के या लड़कियां एक बार नशे के चंगुल में फंस जाते हैं और पैसे का स्रोत समाप्त हो जाता है तो ड्रग्स डीलर उनसे पैडलर का काम कराने लगते हैं। चौंकाने वाला एक सत्य यह भी है कि लड़कियां ड्रग्स की लती बन जाती हैं और उनके पास पैसा नहीं होता तो तलब पूरी करने के लिए वे शरीर भी सौंपने को तैयार हो जाती हैं। प्रतिष्ठित परिवारों की लड़कियों की भी इस कमजोरी का लाभ उठा कर ड्रग्स डीलर व्यवस्थित सेक्स रैकेट में धकेल देते हैं।

ड्रग्स आर्थिक रूप के साथ-साथ मानसिक रूप से भी आदमी को खत्म कर देता है। माता-पिता का हमेशा टार्चर, ओवर प्रोटक्शन या किचकिच या माता-पिता के आपसी झगड़ों से परेशान हो कर बच्चे भाग जाते हैं या फिर संगत या शौक से या फिर पढ़ाई के प्रेशर से एकाध बार ड्रग्स चख लेतें है तो दो तीन बार में वे ड्रग एडिक्ट हो जाते है। आज केमिकलयुक्त ड्रग बड़ी आसानी से मिल जाता है और काफी कम पैसे में।

पैसा नहीं मिलता तो बच्चे चोरी करने लगते हैं या कोई गलत काम करने लगते हैं। लड़कियां शारीरिक शोषण का शिकार होती हैं। क्योंकि इन सब को ड्रग की लत लग चुकी होती है। ऐसा नहीं है कि बिना ड्रग्स लिए पढ़ाई नहीं हो सकती या कोई काम नहीं हो सकता। ड्रग्स ले कर कुछ अच्छा कर भी लिया तो यह ड्रग्स आगे चल कर उस अच्छे को भी खराब कर देगा।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

Address »
जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights