
सुनील कुमार माथुर
पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे जो धीरे-धीरे करके पृथक-पृथक होते गए और संयुक्त परिवार एकांकी परिवार में बदल गया। जब संयुक्त परिवार था, तब परिवार में सदस्यों की संख्या भी अधिक होती थी और उनमें एकता का भाव दिखाई देता था। वहीं दूसरी ओर परिवार के रिश्ते भी काफी मजबूत व प्रगाढ़ हुआ करते थे। ऐसा लगता था कि ये रिश्तेदार नहीं, अपितु एक ही परिवार के सदस्य हैं। लेकिन न जाने किसकी नजर लगी कि परिवार धीरे-धीरे खंडित होता गया, टूटता गया।
आज एक ही परिवार में पति-पत्नी व उनके दो बच्चे हैं। मगर वे आपस में बात नहीं कर रहे हैं और चारों अपने-अपने मोबाइल पर इतने व्यस्त हैं कि उन्हें यह भी नहीं पता कि उनके पास कौन बैठा है। वे पास-पास में बैठे हुए भी व्हाट्सएप पर वीडियो डाल रहे हैं। जब परिवार में ही ऐसी स्थिति है, तो फिर हम कैसे दूसरों से बेहतर व मजबूत रिश्तों की आशा कर सकते हैं। रिश्तों को निभाने में भावनाएं होनी चाहिए, न कि विवशता।
रिश्तों की सिलाई अगर भावनाओं से हुई है तो फिर टूटना मुश्किल है। अगर स्वार्थ से हुई है तो टिकना मुश्किल है। आज सब ओर स्वार्थ का बोलबाला है। लोग अपनी मनमर्जी से काम करते हैं। अगर किसी से शिकायत कर दी तो जवाब है कि ऐसा हुआ, वैसा हुआ। बात को तत्काल प्रभाव से टाल दिया जाता है, जिसके कारण संबंधों में खटास आ रही है और वे कांच की तरह बिखर कर चकना-चूर हो रहे हैं। अरे मेरे भाई, उस आंसू से बचो जो किसी का दिल दुखाने से निकलें और उन आंसुओं की कद्र करो जो आपके लिए किसी की आंख से निकलें।
आज इंसान के पास सब्र नहीं है या सब्र रखना नहीं चाहता है। यही वजह है कि हर इंसान उतावला नजर आ रहा है और इसी उतावलेपन के कारण कभी-कभी बना बनाया काम भी बिगड़ जाता है। इसलिए हर इंसान को जीवन में सब्र रखना चाहिए। हां, इसमें तनिक देर जरूर लगेगी लेकिन सब कार्य सही होगा। आपको जो चाहिए, वहीं मिलेगा, चूंकि दिन बुरे हैं, जिंदगी नहीं। इसलिए सब्र रखिए, सब सही होगा।
हर व्यक्ति सब्र रखने की बात करता है लेकिन सब्र कोई नहीं करता। न जाने उन्हें इतनी उतावली क्यों है। याद रखिए, कहने से कठिन सुनना होता है, और सुनने से कठिन सहना, पर सबसे कठिन होता है सब भूल जाना और सामान्य रूप से रहना।
सुनील कुमार माथुर
(स्वतंत्र लेखक व पत्रकार)
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच
33 वर्धमान नगर, शोभावतों की ढाणी, खेमे का कुआं, पालरोड, जोधपुर, राजस्थान
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