
गीत : गरीबी… भविष्य के भरोसे रात गुजर जाती है, जिंदगी एक बार फिर से मुकर जाती है, आने वाले कल के भरोसे आखिर कैसे रहें, परेशानियां कल के बदले इस्तेगबाल… ✍🏻 सिद्धार्थ गोरखपुरी
कितना भी दबाओ मगर आवाज़ करती है
गरीबी कब, कहाँ, किसका लिहाज करती है
असमय चेहरे की झुर्रिया और पके बाल सारे
हिस्से में आ ही गए हैं वैसे तो जंजाल सारे
गरीबखाने में गरीबी लड़ती है हर दम गरीब से
गरीब की तबियत हर वक्त नासाज करती है
गरीबी कब, कहाँ, किसका लिहाज करती है
काश के जरूरतें…जरूरत से ज्यादा जरूरी न होतीं
जरूरत को मुकम्मल करने की मजबूरी न होती
वैसे जरूरतें जरूरत से कहीं ज्यादा हर एक गरीब पर नाज करती है
गरीबी कब, कहाँ, किसका लिहाज करती है
भविष्य के भरोसे रात गुजर जाती है
जिंदगी एक बार फिर से मुकर जाती है
आने वाले कल के भरोसे आखिर कैसे रहें
परेशानियां कल के बदले इस्तेगबाल
आज करती है
गरीबी कब, कहाँ, किसका लिहाज करती है
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