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सोमरस की पवित्र परंपरा आज पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है, बल्कि यह चरणामृत/पंचामृत के रूप में मंदिरों में जीवित है। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) उसी पवित्र, बलवर्धक और शीतल तत्वों के संयोजन पर आधारित है, केवल इसमें ‘सोम’ नामक जड़ी-बूटी की कमी है।
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय धर्मग्रंथों, विशेषकर वेदों में, सोमरस नामक एक पेय का वर्णन मिलता है, जिसकी महिमा देवताओं के ऐश्वर्य और अनुष्ठानों से जुड़ी हुई है। यह पेय इतना पूज्यनीय था कि ऋग्वेद का पूरा नौवां मंडल (सोम मंडल) इसी की स्तुति और निर्माण प्रक्रिया को समर्पित है। हालांकि, आधुनिक युग में, सोमरस को लेकर एक बड़ा भ्रम व्याप्त है; इसे अक्सर ‘सुरा’ या मदिरा के समतुल्य मान लिया जाता है, जो वैदिक ज्ञान और धार्मिक परंपरा का घोर अपमान है। यह आलेख सोमरस के वास्तविक स्वरूप, उसके दिव्य महत्व और उससे जुड़े रहस्यों को उजागर करता है।
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सोमरस और मदिरा (शराब) के बीच का अंतर – हमारे धर्मग्रंथों में यह अंतर अत्यंत स्पष्ट है, फिर भी आम धारणा में यह भेद धुंधला हो गया है।
- सोमपान (सोमरस): ‘सोम’ का अर्थ है शीतल, पवित्र और अमृततुल्य। ऋग्वेद में यह ज्ञान, ऊर्जा और अमरता (amṛta) का स्रोत बताया गया है। इसे देवत्व से जोड़ा गया है।
- मद्यपान (सुरा): ‘मद’ का अर्थ है नशा, अहंकार और उन्माद। वेदों में सुरापान को घृणा की दृष्टि से देखा गया है और इसे असुरों तथा निम्न वृत्तियों वाले लोगों से जोड़ा गया है।
सोमरस का निर्माण – सोम के निर्माण में अन्न या फलों को किण्वन (सड़ाने) की प्रक्रिया से नहीं गुजारा जाता था, जो अपवित्र मानी जाती है। इसके ठीक विपरीत, सोमरस की विधि एक पवित्र अनुष्ठान थी। सोम नामक पौधे को पीसकर और निचोड़कर रस निकाला जाता था। इस रस को मेमने के ऊन से बनी छन्नी से छानकर शुद्ध किया जाता था (इसे ‘सोम पवमान’ कहा जाता है)। इस रस में दूध, दही, घी और शहद जैसे पवित्र, बलवर्धक पदार्थ मिलाकर इसका सेवन किया जाता था। यह विधि स्पष्ट करती है कि सोमरस एक पौष्टिक, आयुर्वेदिक टॉनिक था, जो व्यक्ति को बलशाली, बुद्धिमान और ओजस्वी बनाता था, न कि विवेक नष्ट करने वाला मादक पदार्थ।
देवराज इंद्र की शक्ति और सोमरस – देवराज इंद्र की शक्ति और पराक्रम का मूल आधार सोमरस ही था। यह पेय केवल आनंद के लिए नहीं, बल्कि सृष्टि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा का स्रोत था। इंद्र के सबसे महान कृत्य, जैसे वृत्रासुर का वध और जल को मुक्त करना, सोमरस पीने के बाद ही संभव हो पाए थे। ऋचाओं में सोम को इंद्र के मुख्य हथियार वज्र का ‘ईंधन’ कहा गया है। जितना अधिक सोम इंद्र पीते थे, उनका पराक्रम उतना ही प्रचंड होता था।
आह्वान – ऋग्वेद में सैंकड़ों बार इंद्र और अग्नि जैसे देवताओं का आह्वान सोमपान के लिए किया गया है। यह स्पष्ट करता है कि सोमरस उनके दैवीय उल्लास (Mada) और विजय के लिए अनिवार्य था।
पौराणिक कथा – ‘सोम के अपहरण’ की कथा बताती है कि यह पेय कितना दुर्लभ और मूल्यवान था। इसे स्वर्ग के दुर्गम मूजवन्त पर्वत से पक्षीराज गरुड़ द्वारा लाया गया था, जिसे बाद में इंद्र के साथ समझौता करके देवताओं के लिए उपलब्ध कराया गया। यह कथा सोमरस की अलौकिक महत्ता को स्थापित करती है। सोमरस का आधार सोम का पौधा आज लगभग विलुप्त है, जिससे इसकी पहचान एक पहेली बनी हुई है। मान्यता है कि यह पौधा राजस्थान के अर्बुद, विंध्याचल, हिमाचल और मलय पर्वतों पर पाया जाता था। यह पत्ती रहित और बादामी रंग की लता थी। सोम को पहचानने वाली प्रजाति ने संभवतः इसके रहस्य को छुपा कर रखा था। कालान्तर में, उन ज्ञानियों के चले जाने से इस पौधे की पहचान और उसे बनाने की सही विधि लुप्त हो गई।
आधुनिक शोध – आधुनिक शोधकर्ताओं ने सोम की पहचान के लिए कई सिद्धांत दिए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- एफ़ेड्रा वुलगारिस (Ephedra Vulgaris): यह सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत है। यह पौधा मध्य एशियाई पहाड़ों में पाया जाता है और इसमें एफ़ेड्रिन नामक उत्तेजक (stimulant) रसायन होता है, जो शक्ति और सतर्कता बढ़ाता है, किंतु मादक नहीं होता।
- आध्यात्मिक रूपक: भारतीय परंपरा में कई विद्वान मानते हैं कि सोम केवल भौतिक पौधा नहीं था, बल्कि यह आंतरिक चेतना, ज्ञान और आनंद की प्राप्ति का एक रूपक था, जो साधना की उच्च अवस्था में प्राप्त होता है।
सोमरस की पवित्र परंपरा आज पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है, बल्कि यह चरणामृत/पंचामृत के रूप में मंदिरों में जीवित है। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) उसी पवित्र, बलवर्धक और शीतल तत्वों के संयोजन पर आधारित है, केवल इसमें ‘सोम’ नामक जड़ी-बूटी की कमी है।
सोमरस उस युग का दिव्य ‘हर्बल टॉनिक’ था, जिसे धार्मिक शुद्धता, बल और बुद्धि की वृद्धि के लिए ग्रहण किया जाता था। इसका अपमान करके इसे शराब समझना वेदों के ज्ञान को अनदेखा करना है। सोमरस उस समय का शक्तिप्रदायक अमृत था, जो देवताओं को देवत्व और मनुष्यों को स्वास्थ्य तथा ज्ञान प्रदान करता था। यह आवश्यक है कि हम इस भ्रम को त्यागें और सोमरस को उसके वास्तविक, पवित्र, और बलवर्धक स्वरूप में पहचानें, जैसा कि ऋग्वेद के सोम मंडल में उसका गुणगान किया गया है।
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