समाज कमजोर न समझे बेटियों को, बेटियां भी दब्बू बनकर न रहें

ओम प्रकाश उनियाल
जैसाकि, आज युवतियां हर क्षेत्र में अपना स्थान बना रही हैं, जिससे उनका मनोबल तो बढ़ ही रहा है साथ ही आर्थिक रूप से भी मजबूत बन रही हैं। अब वह समय नहीं कि जब बेटियों को सीमित दायरे तक सिमटकर अपनी तमाम इच्छाओं को दबाना पड़ता था। क्योंकि हमारा पुरुष प्रधान समाज यह नहीं चाहता था कि बेटियां उनकी बराबरी करें। हालांकि, आज भी कई जगह यह स्थिति है कि बेटियों को शिक्षित करना तो दूर उनको घर की बेड़ियों में बांधकर रखा जाता है।
जो लोग इस प्रकार की घटिया सोच बेटियों के प्रति रखते हों उनका तो सामाजिक बहिष्कार खुलेआम किया जाना चाहिए। हमारे देश में सरकारी संस्थाओं के अलावा गैर-सरकारी संस्थाएं भी हैं जो सामाजिक दबाव में दबी नारकीय जीवन जी रही बेटियों को नयी दिशा दिखाकर उनको स्वावलंबी बना रही हैं। उनको अपनी स्वतंत्र जिंदगी जीने का अवसर प्रदान कर रही हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा प्रधानमंत्री ने दिया हुआ है। यदि हमारा समाज इस नारे पर भी खरा न उतर पाए, हम अपनी संकीर्ण सोच को नहीं बदल पाए तो हमारा मानव जीवन व्यर्थ है। बेटियों को न तो समाज कमजोर समझें, जाति-वर्ग का भेदभाव न करे और ना ही बेटियां स्वयं को कमजोर समझें। जो बेटियां स्वयं को कमजोर समझती हैंA.
अपना आत्मविश्वास खो बैठती हैं उनको ही यह समाज दबाने की फिराक में रहता है। हमारे समाज के बीच ही बेटियों के धुर-विरोधी लोग भी हैं। बेटियों के विकास के लिए केंद्र से राज्य सरकारें समय-समय पर अपने-अपने स्तर से विभिन्न योजनाएं चलाती आ रही है। जिनका पूरा-पूरा लाभ उनको उठाना चाहिए।