धर्म-संस्कृति

शक्ति और ज्ञान की देवी स्कन्द माता

सत्येन्द्र कुमार पाठक

सनातन धर्म के शाक्त सम्प्रदाय का विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। मोक्ष द्वार खोलने वाली मातास्कन्द भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।नवदुर्गाओं में पंचम स्कंदमाता का अस्त्र कमल , जीवन साथी भगवान शिव , सवारी सिंह , पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय है।सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया । शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ देवासुर संग्राम में देवताओं के स्कन्द माता के पुत्र कुमार कार्तिकेय सेनापति थे । स्कन्द पुराण के अनुसार कुमार कार्तिकेय और शक्ति कहकर स्कंदमाता की महिमा का वर्णन है। स्कंदमाता की चार भुजाएँ में दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की कमल पुष्प है।

बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी कमल पुष्प ली हुई , वर्ण पूर्णतः शुभ्र है ।नवरात्रि पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व है। शुभ्र चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप होता है। साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण होने और मृत्युलोक में परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है ।स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव होती है।सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री स्कंदमाता देवी होने के कारण उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न होता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है।

माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन स्कन्द माता की उपासना करने से सर्वांगीण फल की प्राप्ति होती है । या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।

स्कन्द माता द्वारा देव सेनापति कार्तिकेय को दैत्यों एवं दानवों को संहार तथा देवों , वेदों , एवं जनकल्याण का मंत्र तथा शिक्षा दी थी । देव सेनापति कार्तिकेय द्वारा दैत्यराज तारकासुर एवं दैत्यों और दानवों। का संहार कर जनता को खुशहाल जीवन स्थापित किया गया । स्कंदमाता की मंदिरों में उत्तराखण्ड का टिहरी के सुरकुट पर्वत , रुढ़की , विलासपुर जिले के मल्हार , राजस्थान का पुष्कर ,नेपाल , इंदौर का मंडलेश्वर , जैतपुरा , बलरामपुर , कानपुर , विदिशा में स्कंदमाता मंदिर , उत्तरप्रदेश के अहिरौली , वाराणसी क्षेत्र के जगतपुरा में स्कन्द माता मंदिर एवं शाक्त स्थल प्रसिद्ध है ।


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