गाओ और मानवीय संरक्षण है गोवर्धन पूजा
गाओ और मानवीय संरक्षण है गोवर्धन पूजा… ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है। कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले आग्रह किया था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
गोवर्द्धन पूजा – पुराणों।उपनिषद तथा ग्रंथों मे मानव कल्याण तथा सम्टद्धि के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पर्वत की पूजा है। उतरप्रदेश का मथुरा में गोवर्धन पर्वत स्थित है। सतयुग में द्रोण महर्षि के पुत्र गोवर्द्धन महर्षि मथुरा में स्थित द्रोणांचल पर्वत की श्रीखला गोवर्द्धन महर्षि के नाम से ख्याति था। गोवर्धन पर्वत की सुंदरता देखकर पुलस्त्य महर्षि मंत्रमुग्ध होने के बाद द्रोणाचल पर्वत के स्वामी महर्षि द्रोण से कि मैं काशी में रहता हूं। आप अपने पुत्र गोवर्धन को दीजिए। मैं गोवर्द्धन को काशी में रखूंगा। द्रोणाचल पर्वत अपने पुत्र गोवर्धन के लिए दुखी हो रहे थे, लेकिन गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं आपके साथ चलुंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।
आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्यजी ने गोवर्धन की यह बात मान ली। गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे? पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए। रास्ते में ब्रज भूमि आई। उसे देखकर गोवर्धन सोचने लगा कि भगवान श्रीकृष्ण यहां बाल्यकाल और किशोरकाल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। अगर मैं यहीं रह जाऊं तो उनकी लीलाओं को देख सकूंगा। गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। पुलस्त्य ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे।
ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं है। कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को वापस उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे पहले आग्रह किया था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्यजी उसे ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिला। तब ऋषि ने उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया, अत: आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा। फिर एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कलियुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए अपनी सबसे छोटी उंंगली से गोवर्द्धन उठाया गया था।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पर्वत की पूजा विशेष रूप से की जाती है। गोवर्द्धन पर्वत को गिरीराजजी कहा जाता है। द्वापर युग में गोवर्धन पर्वत मथुरा में स्थित है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने गोकुल-वृंदावन के लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था। तभी से भक्तों द्वारा गोवर्द्धन पर्वत की पूजा की जा रही है। पर्वत को एक ऋषि ने तिल-तिल घटने का शाप दिया था। कलियुग के अंत तक यह धरती में पूरा समा जाएगा।
द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली पर तीन दिनों तक उठा कर रखा था और सभी वृंदावन वासियों की रक्षा इंद्र के कोप से की थी। गौ वर्द्धन। गौ माता की पूजन। कामधेनु पूजन का महत्व है। साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा है कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को वैवस्वत मन्वतंर काल में कामधेनु का अवतरण। महर्षि पुलस्त्य द्वारा गोवर्द्धन पर्वत का स्थापन और द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा देवराज इंद्र का मानमर्दन। गोवर्धन पर्वत से ब्रजवासी तथा मानव जीवन की सुरछा किया गया है।