
लघुकथा : अकेला, पहली बार किसी युवती से उसके दैहिक संबंध कायम हुए थे और रागिनी उससे उम्र में दस साल छोटी थी लेकिन आकाश की शालीनता और उसकी भद्रता के अलावा उसकी नौकरी साफ सुथरा… बिहार से राजीव कुमार झा की कलम से…
आकाश उस दिन और उसके बाद रागिनी से होने वाली अपनी मुलाकातों को आज भी नहीं भूल पाता है और उस अंतरंगता में उसने निरंतर उससे सबकुछ पाने और देने की जो कोशिश की थी उसमें उससे कितना अलग और अधूरा वह खुद को महसूस करता रहा था। रागिनी से इस दिन अपने दोस्त के घर पर वह मिला था।
पहली बार किसी युवती से उसके दैहिक संबंध कायम हुए थे और रागिनी उससे उम्र में दस साल छोटी थी लेकिन आकाश की शालीनता और उसकी भद्रता के अलावा उसकी नौकरी साफ सुथरा चेहरा यह सब उसकी सपनीली आंखों में सागर की लहरों की तरह से समा गया था और अगले तीन-चार सालों तक उसने आकाश की गर्लफ्रेंड बनकर दिल्ली जैसे महानगर में यहां युवतियों की जिंदगी की कुछ बेहद जरूरी बातों में खुद को कभी अकेला और अधूरा नहीं समझा था। आकाश उसे अच्छा लगता था और वह अक्सर उसे अपना सबसे निकटस्थ भी समझता रहा था।
उसे धीरे-धीरे रागिनी काफी अच्छी लगने लगी थी और जब भी मन होता वह दोपहर या शाम में उसके पास चली आती और उसकी इच्छाओं के अनुरूप अपने दोस्तों के मुहल्ले में एक छोटा सा फ्लैट भी किराए पर ले लिया था और यहां उसके पास रागिनी के आने-जाने को लेकर मकान मालिक या आसपास रहने वाले अन्य दूसरे लोगों को कोई समस्या नहीं थी क्योंकि यहां बाहर से आकर रहने वाले युवा लोगों की ज़िंदगी में यह सब बातें आम तौर पर प्रचलित थीं और इसमें वह बेहद निर्लिप्त तौर पर खुद को भी शामिल पाता था।
आकाश दैहिक रिश्तों में रागिनी की मनोगत ज़रूरत को लेकर सदैव असमंजस में भी रहा लेकिन रागिनी ने इसके बारे में उसे कभी कुछ नहीं कहा और इसी बीच अंशुल से भी उसके दैहिक संबंध कायम हो गये लेकिन आकाश को रागिनी ने इसके बारे में कभी कुछ नहीं कहा। आकाश से पिछले तीन-चार सालों से रागिनी के जो दैहिक संबंध थे. रागिनी के साथ आकाश के लिए भी यह एक बेहद सुख शांति और आनंद का विषय बन गया था।
इसी बीच एक दिन वह केनरा बैंक में प्रोबेशन अधिकारी के पद पर नियुक्त होने जब तिरुवनंतपुरम रवाना हो रही थी तो उसके पहले आकाश से अलग होते हुए उसे बेहद उदास देखकर वह काफी आहत हो गयी थी और आकाश उसे बस पर चढ़ा कर लौट आया था। वह कई दिनों तक अपने फ्लैट में अकेला पड़ा रहा था और फिर सारा माजरा उसे समझ में आया। यह बीस-बाईस साल का अकेलापन उसे अक्सर महसूस होता रहा और उसने पिता को भी गांव में उसकी शादी के लिए आने वाले लोगों को बराबर मना कर देने के लिए कहा।
सुंदर सांवली लड़कियों से उसकी जो दूरी बनी उसने भीतर से उसे अकेला बना दिया था और खुद को काफी अधूरा समझता रहा। रागिनी एक समझदार युवती थी और उसने उसे अकेला नहीं होने दिया था। शहर की और युवतियों से उसने काफी दूरी महसूस की और इस रूप में इतने सालों से अपने अस्तित्व और प्रतिष्ठा की लड़ाई वह अकेला लड़ता रहा था।
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