चकनाचूर हुये हैं…
कृतिका द्विवेदी ‘कृति’
सीधी, मध्य प्रदेश
कुछ मग़रूर हुये कुुछ मशहूर हुये हैं,
कुछ मशहूर हुये कुुछ मग़रूर हुये हैं,
सामने रह कर भी जो दूर थे हमसे ,
पास तो आये पर दिल से दूर हुये हैं ।
पाल रखे थे हीरा होने की हसरत,
अब शीशे की तरह चकनाचूर हुये हैं।
जब तक मेरे थे आधे अधूरे ही थे वो,
किसी गैर के हुये तो भरपूर हुये हैं।
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ख़ामोशी का दुशाला ओढ़े फिरते थे
अब वो बजकर सारंगी,संतूर हुये हैं।
बेतहाशा दर्द से नवाजा है समय ने
मामूली से ज़ख़्म उनके नासूर हुये हैं।