डाक-बाबू का राज, देखा डाकघर में आज
नवाब मंजूर
बैंक वाले हड़ताल पर है
पोस्ट आफिस वाले मजे ले रहे हैं
एक निबंधित पत्र भेजने डाकखाने गया
दोपहर एक बजकर इकतीस मिनट हुए थे
काउंटर पर एक व्यक्ति पहले से मौजूद थे
डाक-बाबू खिड़की बंद करते हुए कहे
लंच टाईम…….. 2 बजे आइए
एक तख्ती लगा निकल लिए?
सोचा आधा घंटा इंतजार करना पड़ेगा…
चलो बगल के डाकखाने चलते हैं
वहां पहुंचा तो डाक-बाबू अपनी कुर्सी पर से गायब
खिड़की पर पांच सात चिट्ठियां रजिस्ट्री को पहले से रखीं थीं
दो चार लोग लाईन में खड़े थे
मैंने खिड़की में झांक कर पूछा
कहां गए हैं डाक-बाबू?
जवाब मिला बस आ ही रहे हैं दो मिनट में
दो मिनट का इंतजार करते करते आधा घंटा हो आया
डाक-बाबू नहीं आए
बच्चों को स्कूल से पिक करने का वक्त हो आया
हाय! गजब का तमाशा है..
खिड़की तरफ देखकर बोला
मोदी जी जो कर रहे हैं, ठीक कर रहे हैं
सबका निजीकरण!
अंदर वाले बाबू देखे
पर ना कुछ बोले
मन मसोस कर अपना पत्र उठाया
बच्चों के पहुंचा स्कूल
उनकी छुट्टी हो चुकी थी
2.45 होने को थे
उन्हें स्कूटर पर बिठाया
लिए उन्हें दोबारा प्रधान डाकघर पहुंचा..
चलो देखो !
पोस्ट आफिस में कैसे काम होता है?
रजिस्ट्री काउंटर पर लाईन में चार पांच लोग खड़े थे
मैं भी पीछे लग गया
इंतजार शुरू अपनी बारी का…
काफी देर तक लाइन बढ़ा नहीं
बच्चों को उनकी भूख थी सता रही
मैंने आगे झांककर देखा
डाक-बाबू भीतर के काम निपटा रहे थे!
वहीं बगल के एक काउंटर पर लोग
जल्दी जल्दी आगे बढ़ रहे थे
मैंने बेटी को बुलाया
बगल से साइड में उसे लगाया
पत्र थमाया
शीघ्र उसका नंबर आया
डाक-बाबू को उसने थमाया
स्पीड पोस्ट के रुपए 50 बताया
मैंने दो सौ का एक नोट बेटी को थमाया
डाक-बाबू ने उसे नोटगिनने वाले मशीन में
लगाकर गिना
बिना मशीन में गिने 150 किए वापस
देखी बेटी और मुस्कुराई
भला एक नोट मशीन से कौन गिनता है भाई?
मैंने कहा ये सरकारी डाक बाबू हैं
ऐसा ही करते हैं..
खैर स्पीड पोस्ट हुआ!!
बेटी ने रसीद और रुपए मुझे पकड़ाए
फिर तीनों ( बेटा-बेटी और मैं)
बैठ स्कूटर घर को आए…
मैंने चश्मे से रसीद को देखा
रुपए 47.20 छपे थे
जबकि मेरे पूरे 50 कटे थे
देखा और मंद मंद मुस्काया
बच्चों को बताया
सरकारी डाक-बाबू की लूट!
हर जगह कुछ ऐसी ही है
कहीं कुछ कम कहीं बहुत!!
बच्चों को क्या अनुभव हुआ खूब?
फिर मैंने दोहराया
मोदी जी जो कर रहे हैं
ठीक ही कर रहे हैं..
सबकुछ प्राइवेट करते जा रहे हैं
बेकारे बैंक वाले हल्ला कर रहे हैं
फिर भी पोस्ट आफिस वाले
सबक नहीं ले रहे हैं!
और निजीकरण पर रो रहे हैं।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »मो.मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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