आपके विचार

इंसाफ का तराजू

इंसाफ का तराजू… इंसाफ का तराजू यही है कि आज तक माता-पिता ने हमारी सेवा की है और हमें योग्य नागरिक बनाया है और अब हमारा समय हैं कि हम उनका साथ दें। दो वक्त नहीं तो कम से कम शाम की रोटी उनके साथ बैठकर खायें। उनसे गप्प शप्प कर समय दें। वे हम से कुछ भी नहीं चाहते हैं।  #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

कहते हैं कि परमात्मा के यहां देर हैं पर अंधेर नहीं और जब उसकी लाठी की मार किसी को पडती हैं तब आवाज नहीं होती हैं। उसकी यह लाठी ही इंसाफ का तराजू हैं। अतः आप किसी से डरे या न डरें लेकिन परमात्मा से अवश्य ही डरें अन्यथा वो आपकों आपके किये गये कर्मों की सजा देने में किसी भी प्रकार की रियायत नहीं देता हैं। वर्तमान में लोग अपने आपकों सभ्य समाज का एक आदर्श नागरिक कहते हुए तनिक भी संकोच नहीं करता है।

वह अपने आपकों समाज का हितैषी बताता है और समाज की सेवा के नाम पर निर्विरोध निर्वाचित होकर अंहकार में घूम रहा हैं किसी समाज की संस्था के एक मौहल्ले का सदस्य क्या चुना गया, मानों राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री का चुनाव जीत गया हो। जो व्यक्ति अपनी बीमार मां की सेवा न कर सके। उससे बीमारी की हालत में बातचीत न करें। उसे न खुद मिलने जाये और न अपनी पत्नी व बच्चों को मां से मिलने के लिए भेजे। ऐसे लोग समाज की सेवा क्या खाक करेगें। केवल सभा सम्मेलन या गोष्ठियों में भाग लेने से समाज सेवा नहीं होती हैं।

समाज सेवा के लिए पहल अपने घर से ही करनी पडती हैं। जब हम परिवार के सदस्यों को एक छत के नीचे खुश रख सकते हैं तभी समाज सेवा के कार्य में सफलता प्राप्त होती है। मात्र कह देने से समाज सेवा नहीं होती है। याद रखिए किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि माँ के जाने के बाद हमें प्यार से कोई बेटा कह कर नहीं पुकारेगा और पिता के जाने के बाद कोई भी हमारी जिन्दगी को नहीं संवारेगा इसलिए माँ बाप की हमेशा इज्जत करनी चाहिए जिस दिन यह जिन्दगी से चले जायेंगे उस दिन से हमारे पास पछतावे के सिवाय कुछ नहीं रहेगा l

इंसाफ का तराजू यही है कि आज तक माता-पिता ने हमारी सेवा की है और हमें योग्य नागरिक बनाया है और अब हमारा समय हैं कि हम उनका साथ दें। दो वक्त नहीं तो कम से कम शाम की रोटी उनके साथ बैठकर खायें। उनसे गप्प शप्प कर समय दें। वे हम से कुछ भी नहीं चाहते हैं। बस उन्हे़ बच्चों का प्यार चाहिए। आपका स्नेह ही उनकी सबसे कीमती औषधि है। आप खुश तो वे खुश हैं। आप मस्त है, स्वस्थ हैं तो वे भी स्वस्थ और मस्त है. उनकी सेवा परमात्मा की सेवा हैं। अगर आपने सेवा नहीं की तो इंसाफ का तराजू आपकों कभी भी माफ नहीं करेगा। फिर जिंदगी भर रोते ही रहना हैं।

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इंसाफ का तराजू... इंसाफ का तराजू यही है कि आज तक माता-पिता ने हमारी सेवा की है और हमें योग्य नागरिक बनाया है और अब हमारा समय हैं कि हम उनका साथ दें। दो वक्त नहीं तो कम से कम शाम की रोटी उनके साथ बैठकर खायें। उनसे गप्प शप्प कर समय दें। वे हम से कुछ भी नहीं चाहते हैं।  #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

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