पानी बचाना है…
ओम प्रकाश उनियाल
पानी की कीमत वे ज्यादा समझते हैं जिन्हें पीने के लिए एक बूंद भी पानी नहीं मिलता, जिन्हे मीलों दूरी तय कर पानी लाना पड़ता है, घंटों कतार में खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जहां पर सूखा पड़ता है, जो गंदा पानी पीने को मजबूर होते हैं। ‘जल ही जीवन’ है जैसा नारा यही लोग समझ सकते हैं।
रोज-रोज गाड़ियां धोने वालों, सार्वजनिक स्थानों पर लगे नल खुले छोड़ने वालों तथा घरों में बेवजह अधिक पानी उपयोग करने वालों को भला पानी की बर्बादी से क्या लेना-देना। वे तो पानी की कीमत जो चुकाते हैं न! उनकी यही सोच होती है। धरती पर पीने का पानी बहुत कम है। खारे पानी की मात्रा अधिक है।
जल-स्रोत व विलुप्त होते जा रहे हैं, नदियों व पृथ्वी का जल स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। आबादी बढ़ती ही जा रही है, पानी की खपत भी साथ-साथ बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन से ऋतु-चक्र का संतुलन बिगड़ रहा है। जिसके कारण पानी का स्तर कम होता जा रहा है। जल-संरक्षण आज जरूरी हो गया है।
सबका जीवन इसी पर टिका हुआ है। जल -संरक्षण के तरीके बहुत हैं जो कि आसानी से अपनाए भी जा सकते हैं। जो लोग जल को जीवन का आधार मानते हैं वे जल-संरक्षण की तकनीक अपनाकर जल दान में सहयोग कर रहे हैं। जल-संरक्षण को एक सतत् अभियान का रूप देना होगा। व्यवहारिक तौर पर हरेक को जागरूक होना होगा।
यदि अब भी लोग चेतेंगे नहीं तो बूंद-बूंद पानी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर होना होगा। केवल जल दिवस मनाने से ही समस्या हल नहीं होगी। यह दिवस तो केवल जागरूकता और याद दिलाने के लिए मनाया जाता है। ‘पानी बचाना है’ के नारे को घर-घर पहुंचाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की बनती है।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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