नीतीश कुमार की भूमिका और राहुल गांधी का भविष्य
देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में नीतीश कुमार की भूमिका और राहुल गांधी का भविष्य...

राजीव कुमार झा
बिहार में जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ कर बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार की जगह राजद नेतृत्वनीत महागठबंधन से जुड़कर इसकी सरकार का गठन किया है और इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 2024 के लोकसभा चुनावों में भी सत्ता के मैदान में उनको चुनौती भी दी है!
बिहार में पिछले कई महीनों से भाजपा और जदयू में आपसी तकरार का माहौल व्याप्त था और आखिरकार इसकी परिणति भाजपा – जदयू गठबंधन के बिखराव के रूप में सामने आयी. भाजपा के साथ नीतीश कुमार का पुराना तालमेल रहा है और केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार के गठन में भी उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी है. राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में वाजपेयी सरकार ने यहां उनकी सरकार को कुशासन के आरोप में बर्खास्त कर दिया था और इस दरम्यान विधानसभा में बहुमत के बिना भी कुछ दिनों के लिए वह मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गये थे लेकिन इसके बाद उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था लेकिन लालू यादव के कुशासन ने बिहार की राजनीति में धीरे – धीरे नीतीश कुमार को यहां का नायक बना दिया और सत्ता की कुर्सी के खेल में भाजपा और राजद के साथ वह निरंतर नयी चालें खेलते रहे हैं.
बिहार की राजनीति में उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा राज उनके दलबदल के इस खेल को माना जाता है और राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को 2024 के लोकसभा चुनावों की याद दिला कर इन चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के नये गठजोड़ और इसके प्रधानमंत्री के रूप में इसके आगामी संभावित नेता के रूप में उन्हें अपने वजूद का अहसास कराया है. देश के आगामी राजनीतिक परिदृश्य को लेकर यह एक जटिल परिस्थिति है और पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा के विरुद्ध कांग्रेस और इससे जुड़ी पार्टियों के प्रगतिशील राष्ट्रीय गठबंधन के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थितियों में देश में गैर भाजपा समर्थक दलों के नये ध्रुवीकरण में नीतीश कुमार अगर किसी नये दायित्व के निर्वहन में आगे आते हैं तो यह देश के लोकतंत्र और इसकी दलगत राजनीति के विकास का कोई नया अध्याय ही होगा और सचमुच जिसे लिखा जाना चाहिए.
लोकतंत्र में सरकारें आती -जाती रहती हैं लेकिन देश को तमाम तरह की स्थितियों में सदैव बना रहना चाहिए और केन्द्र में अपनी पहली सरकार के विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कही इन बातों पर हमें फिर से गौर करना चाहिए और भाजपा के विरुद्ध देश में व्याप्त निराशाजनक राजनीतिक परिस्थितियों में नये बदलाव से जुड़ी पहल का स्वागत करना चाहिए और इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि भारत के लोकतंत्र में पुरानी सामंती संस्कृति की राजनीति का अब उसी तरह पतन होता चला जाएगा देश की राजनीति में जिस तरह की स्थितियां राजीव गांधी के शासनकाल के अंतिम दिनों में वी.पी.सिंह के उभार से कायम हुई थीं.
राजीव गांधी सरकार के पतन के बाद देश के राजनीतिक परिवेश में आने वाले सकारात्मक बदलावों से हम सभी वाकिफ हैं और इसी संदर्भ में देश के गैर कांग्रेसी गैर भाजपा दलों के आपसी बिखराव के बारे में भी हमें गौर करना होगा और कांग्रेस के नेतृत्व में संगठित गैर भाजपा दल नीतीश कुमार के नेतृत्व में अगर भाजपा और नरेंद्र मोदी को अगर सत्ता के मैदान में ललकारते हैं तो इसे देश की राजनीति का कोई अप्रत्याशित अध्याय भी शायद इसे नहीं माना जाएगा.
यह संभव है कि कांग्रेस इन स्थितियों में चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर की सरकार की तरह देश की राजनीति में इस तरह की केन्द्र सरकार के गठन में उसे अपना समर्थन प्रदान करे लेकिन इसके पीछे उसका उद्देश्य सत्ता की राजनीति में नयी चालों को शुरू करना ही होगा और यह पार्टी आज भी देश की एक मजबूत संगठित पार्टी है और यह केन्द्र की सत्ता में वापस लौटने के लिए अनुकूल परिस्थितियों का इंतजार कर रही है. भावी प्रधानमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की देशसेवा से इस पार्टी के राजनीतिक चिंतन का कोई सरोकार नहीं है!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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