इस गलती से बढ़ा रेस्क्यू का समय और जोखिम
शुरुआत में दिक्कत आएगी, लेकिन बाद में काम आसान हो जाएगा। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि 22 मीटर रास्ता बना और 38 मीटर रास्ता बनाना है। इसके अलावा ऊपर रास्ता बनाने की प्रकिया भी ठीक है। विनोद कुमार गोवा में 760 किलोमीटर रेललाइन निर्माण करने वाले टीम में शीर्ष पद पर रहे हैें।
विकासनगर। उत्तरकाशी जिले के सिलक्यारा में सुरंग में फंसे मजदूरों को रेस्क्यू करने में अभी समय लग सकता है। सुरंग निर्माण विशेषज्ञ के मुताबिक, सुरंग के ढहने के बाद दो दिन मलबा हटाने की गलती के चलते रेस्क्यू का समय बढ़ गया है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने में अभी पांच दिन से एक सप्ताह का समय और लग सकता है।
वहीं, सुरंग के भीतर और ऊपर से रास्ता (ड्रिफ्ट) बनाना रेस्क्यू के लिए सबसे कारगर तरीके हैं। कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन, नवी मुंबई के सेवानिवृत अधिशासी निदेशक, परियोजना और टनलिंग इंजीनियर विनोद कुमार सिलक्यारा टनल रेस्क्यू अभियान पर लगातार नजर बनाए हैं। उन्होंने बताया कि उनको सुरंग की खोदाई और रेस्क्यू अभियान का करीब 51 साल का अनुभव है।
बताया कि वर्ष 1996 में गोवा में इसी तरह ही 14 मजदूर रेल सुरंग के ढहने के बाद भीतर फंस गए थे। तब वह परियोजना के चीफ इंजीनियर टनल रहे। उन्होंने सुरंग से मलबा नहीं निकालने दिया। सुरंग से रास्ता बनाने के बाद 13 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। वहीं, एक मजदूर की मलबा गिरने से मौत हो गई थी। बताया कि इसका सबक उन्होंने वर्ष 1987 में नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन में रहते हुए कटरा में सलाल प्रोजेक्ट में लिया था। तब सुरंग ढहने से उसमें दो मजदूर फंस गए थे।
मलबा निकालने के चलते रेस्क्यू अभियान का समय दो महीने तक बढ़ गया। उन्होंने बताया कि सिलक्यारा सुरंग के ढहने के मामले में रेस्क्यू टीम ने दो दिन मलबा हटाकर सबसे बड़ी गलती की, जबकि ढहने के बाद सुरंग को स्थिर रखना होता है। विनोद कुमार बताया, सुरंग में पाइप डाला गया जो 22 मीटर पर फंस गया। अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने चार मोर्चों पर रेस्क्यू अभियान चलाने का निर्णय लिया है। सुरंग में करीब 60 मीटर का रास्ता बनाया जाना है।
इसमें एक एसजेवीएनल सुरंग के ऊपर, ओएनजीसी सुरंग में तिरछे और टीएचडीसीआईएल सुरंग के दूसरे छोर से रास्ता बना रहे हैं। वहीं, नवयुगा कंस्ट्रक्शन कंपनी ने सुरंग के भीतर रास्ता बनाया है, लेकिन कंपनी के मजदूर अंदर जाने से डर रहे हैं। उन्होंंने कहा कि अब दो ही सबसे कारगर तरीके हैं। पहला करीब 22 मीटर पाइप के भीतर नवयुगा के मजदूर को भेजा जाए। वह भीतर जाकर मैन्युअल रास्ता बनाएं।
शुरुआत में दिक्कत आएगी, लेकिन बाद में काम आसान हो जाएगा। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि 22 मीटर रास्ता बना और 38 मीटर रास्ता बनाना है। इसके अलावा ऊपर रास्ता बनाने की प्रकिया भी ठीक है। विनोद कुमार गोवा में 760 किलोमीटर रेललाइन निर्माण करने वाले टीम में शीर्ष पद पर रहे हैें। इस परियोजना में 95 रेल सुरंगों का निर्माण भी किया गया था। उन्होंने बताया कि वह रेस्क्यू में तकनीकी मदद प्रदान कर सकते हैं। फिलहाल में छुट्टियों पर आबूधाबी आए हैं। लेकिन अगर उनको बुलाया जाता है वह मदद के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
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