
डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा, जयपुर, राजस्थान
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दिल को घर ख़ुदा का बना लो।
इंसान हो इंसान को अपना लो।
मंदिर- मस्ज़िद यूं ही रहने दो,
अब गले इक दूजे को लगा लो।
यह नफरत की खाई पाट दो,
खड़ी रंजिश की दीवार गिरा लो।
मुश्किलें जो आ रही सामने,
दोनों मिल बैठकर सुलझा लो।
भूल से उजड़ गए जो आसियाने,
फिर गुलशन ए गुलिस्तां सजा लो।
राम-रहीम कंधे से कंधा मिलाकर,
इक सुन्दर हिंदुस्तान बना लो।
बहने दो मोहब्बत की गंगा-यमुना,
अपनी दोस्ती को परवान चढ़ा लो।
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