प्रगतिशील समाज
सुनील कुमार माथुर
आज हम अपने आपकों प्रगतिशील समाज व सभ्य समाज का प्रगतिशील नागरिक कहने का दम्भ भरते हैं । मगर हकीकत में देखा जाये तो हम प्रगतिशील नागरिक नहीं है । हम अपने आपकों ही सर्वे सर्वा समझते हैं ( चूंकि भीतर से हम अंहकारी व घमंडी हैं ) हम अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझते हैं और दूसरों की उन्नति और प्रगति देखकर उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं । वे दूसरों की उन्नति व प्रगति पर बधाई भी नही़ देते है और अगर बधाई देते भी हैं तो ऐसा लगता है मानों वे उस पर अहसान कर रहे हो
कहा जाता हैं कि ताली दोनों हाथों से बजती हैं । जब आपकी सोच ऐसी हैं तो फिर सामने वाले से आप अपने प्रति सकारात्मक सोच की उम्मीद क्यों रखते हो । दिन भर मोबाइल में घूसे रहने के बावजूद भी किसी के बारे में तारीफ के दो मीठे बोल बोल देना भी आज पीड़ादायक लगता है और कहने को कहते है कि क्या करे काम का बोझ इतना है कि व्हाटसएप तक देखने का समय नहीं मिलता हैं ।
जबकि हकीकत यह है कि दिन भर निकम्मों की तरह रहते हैं व दूसरों की प्रगति देखकर ईर्ष्या करते हैं । जो जैसा बीज बोता है वैसी ही फसल काटता हैं । कोई भी समाज प्रगतिशील तभी बन पायेगा , जब हमारी सोच सकारात्मक होगी और दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशियां ढूंढ पायेगे ।तभी एक स्वच्छ समाज व श्रेष्ठ समाज का सपना साकार हो पायेगा ।
प्रगतिशील जरुर बनें , लेकिन प्रगतिशीलता की आड में झूठ न बोले । निकम्में व आलसी न बनें । दूसरों की प्रगति को देखकर जो ईर्ष्या करते है । वे अपने आपको धोखा देते हैं और दकियानुसी व कमजोर बनते जाते हैं । सभी की उन्नति व प्रगति से ही समाज व राष्ट्र आगे बढता हैं और कुछ नया कर दिखाता हैं ।
अपने सपनों को साकार कीजिये न कि किसी की उन्नति व प्रगति को देखकर अपने आपको दब्बू बनाये । आपके स्नेह के दो मीठे बोल ही आगें बढने में मददगार साबित होते है । अतः जीवन में सहयोग करना सीखें न कि किसी को नीचे दिखाने का प्रयास करें और न ही किसी को हतोत्साहित करें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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