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यह आलेख आधुनिक समाज में बढ़ती प्रताड़ना, अपमान और क्रोध की प्रवृत्ति पर गंभीर विचार करता है तथा बताता है कि यह व्यवहार इंसानियत और सामाजिक रिश्तों को किस प्रकार नुकसान पहुँचाता है। लेखक प्रेम, संयम, संवाद और संवेदनशीलता को जीवन के स्थायी मूल्यों के रूप में अपनाने का संदेश देता है।
- अपमान और पीड़ा का बढ़ता सामाजिक चलन
- क्रोध, अहंकार और टूटती मानवीय संवेदनाएँ
- प्रताड़ना से खोती प्रतिष्ठा और रिश्ते
- प्रेम, संयम और समझ की आवश्यकता
सुनील कुमार माथुर
इस नश्वर संसार में हर कोई किसी न किसी से परेशान नजर आ रहा है। बात-बात पर एक-दूसरे को प्रताड़ित करना आम बात हो गई है। चूँकि टीवी सीरियलों में जैसा लोग देखते हैं, वैसा ही अपने जीवन में व्यवहार में करते हैं। किसी को बिना वजह प्रताड़ित करना या अपमानित करना महापाप की श्रेणी में आता है, लेकिन न जाने इंसान इतना क्यों गिर गया है कि वह सब कुछ जानते हुए भी अनजान-सा बना हुआ है।
जब परमात्मा ने हमें इतना सुंदर मानव जीवन दिया है, सोचने-समझने की शक्ति दी है, तर्क-वितर्क के लिए बुद्धि दी है, फिर भला हम क्यों दूसरों के साथ बेतुकापन-सा व्यवहार कर इंसानियत को कलंकित कर रहे हैं। जो आनंद प्रेम और स्नेह में है, वैसा कहीं भी नहीं है। बैर-भाव तो इंसान को बर्बाद ही करता है। चौबीस घंटों में हम जितनी सकारात्मक शक्ति एकत्र करते हैं, उसे क्रोध एक पल में ही नष्ट कर देता है। इसलिए क्रोध, घमंड और अहंकार से बचकर रहिए।
किसी को प्रताड़ित करने से या अपमानित करने से हमें कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, अपितु इससे हमारी स्वयं की छवि खराब होती है। लोग भले ही हमें सामने कुछ न कहें, लेकिन पीठ पीछे जितने मुँह उतनी ही बातें होती हैं और हमारी साख धूमिल होती है। अतः कभी भी किसी को प्रताड़ित या अपमानित न करें। कभी किसी से जाने-अनजाने में गलती हो जाए तो भी उसे सभी के सामने कुछ न कहें, अपितु एकांत में या एक तरफ ले जाकर समझा देना चाहिए कि उसने जो गलती की है, वह ठीक नहीं है, ताकि भविष्य में ऐसी गलती की पुनरावृत्ति न हो। इससे गलती करने वाला भी अपनी भूल महसूस कर लेगा और आपके प्रति उसका प्रेम और स्नेह भी बना रहेगा।
पाने को तो हम बहुत कुछ पाना चाहते हैं, लेकिन पाने से अधिक उस चीज को संभालकर रखना होता है। फिर वह चीज चाहे धन-दौलत हो, इज्जत, मान-सम्मान हो, पद और प्रतिष्ठा हो, नाते-रिश्ते हों या फिर मित्रता ही क्यों न हो। इसलिए चाह पाने की भले ही कम हो, मगर जो भी है उसे संभालकर रखिए।
लेखक विवरण:
सुनील कुमार माथुर
सदस्य, अणुव्रत लेखक मंच, स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार, जोधपुर, राजस्थान








