दल बदल की राजनीति
दल बदल की राजनीति, दुःख इस बात का है कि पिछले करीब दो-तीन दशक से सरकारे मात्र जनता के साथ छलावा ही कर रही हैं । जनता को नींबू की तरह निचोड़ दिया और उनकी शिकायतों पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही हैं। पहली बात तो यह है कि शिकायत कोई सुनता नहीं। #सुनील कुमार माथुर जोधपुर (राजस्थान)
वर्तमान समय में चुनावी माहौल काफी चरम पर हैं। हर नेता वोट मांगने को घर घर घूम रहा हैं। यही वक्त है कि हम सब मिलकर इन्हें ऐसा सबक सिखाये कि ये जनता-जनार्दन से झूठे वादे करना ही भूल जाये। इसलिए चुनावों के दौरान दल बदल करने वाले नेता को टिकट देना देशहित में नहीं है।
चूंकि जो नेता अपनी पार्टी के प्रति वफादार नहीं है वो भला दूसरी पार्टी व देश का क्या भला कर पायेगे ऐसे नेता केवल अवसरवादी व येन केन प्रकारेण सत्ता की कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। इसलिए इन्हें कदापि भी टिकट न दिया जाए। टिकट कर्मठ, नेक, ईमानदार व देशहित मे काम करने वाले नेता को ही दिया जाये ताकि राष्ट्र उन्नति की ओर अग्रसर हो सकें।
समस्याएं तो समाधान चाहती है न कि दलगत राजनीति। लेकिन आज का नेता जनता को मूर्ख समझता हैं। सत्ता प्राप्ति के बाद समस्याओं का समाधान करना तो दूर की बात जनता से सीधे मुंह बात भी नहीं करते हैं। लोकतंत्र में जनता ध्दारा चुनी गई सरकार ही मनमानी करने लगे तो फिर हम उससे कैसे लोक कल्याणकारी योजनाओं को पूरा करने की उम्मीद करें।
दुःख इस बात का है कि पिछले करीब दो-तीन दशक से सरकारे मात्र जनता के साथ छलावा ही कर रही हैं । जनता को नींबू की तरह निचोड़ दिया और उनकी शिकायतों पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही हैं। पहली बात तो यह है कि शिकायत कोई सुनता नहीं। अगर किसी ने सुन भी ली तो उसका समाधान नहीं हो रहा है। ऐसा लोकतंत्र लोकतंत्र न होकर एक मजाक बन गया है जो समाज व राष्ट्र को पतन के गर्त मे़ ले जा रहा हैन।
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