साहित्य लहर
कविता : बहुत पी ली यार
राजेश ध्यानी
बहुत पी ली यार
उसे भुलानें के लिये
बहुत जी ली ज़िन्दगी
उसे चाहने के लिये ।
पर ये कम्बख्त कलम
पीने पर मचल जाती हें
कभी आंखों की ओर
तो कभी उसके होंठ
छूने चली जाती हे ।
उसके गालों पर
लिखना शुरू कर देती हें ,
इतनी उतावली
उसके बालों में
सारा रंग सजा देती हें ।
नशा बहुत हो चुका यार
कलम भी खाली हो गयी ,
मैं नशे चूर
चिल्लाती हे मुझें लिखना है ?
पर मुझेंअब होंश कहां
देख वहीं थम जाती हैं ।
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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