कविता : अखबार
कविता : अखबार, यहां बड़े बड़ों की, तू तू चलती है, तू एक मामूली सा कलमकार, इन सबके आगे तेरा कलम कहां चल पायेगा, तू अखबार में कैसे छप पायेगा, यहां जगह जगह पाप पनपते हैं… ✍️ राही शर्मा, उज्जैन
तू अखबार में कैसे
छप पायेगा
अपनी ज्ञान का प्रकाश
कैसे फैलाएगा
तेरा तो कोई सोर्स नहीं
पहचान नहीं
कौन सुनेगा तेरी बातें
अपनी बातें कैसे
रख पायेगा
तू अखबार में कैसे
छप पायेगा
यहां बड़े बड़ों की
तू तू चलती है
तू एक मामूली सा
कलमकार
इन सबके आगे
तेरा कलम कहां
चल पायेगा
तू अखबार में कैसे
छप पायेगा
यहां जगह जगह पाप
पनपते हैं
बहुत कम है जो तूझे
पढ़ सकते हैं
फिर कैसा समाज
कैसे लोग
इनके दिलों तक
कैसे पहुंच पायेंगा
तू अखबार में कैसे
छप पायेगा
तेरे सत्य पर पहचान
की परत चढ़ी है
तेरे कलम को सच
लिखने की बिमारी लगी है
किस किस को आवाज
लगाएगा
कैसे उजागर हो पाएगा
तू अखबार में कैसे
छप पायेगा
फॉरेवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में प्रकाशित हुए राजीव डोगरा
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