कविता : ब्यूटी पार्लर
राजीव कुमार झा
जिंदगी की तस्वीर
अब कैसे रंगों से
रोज सजती संवर रही
औरतों के चेहरों पर
आग की उन्मुक्त लपटें
सुलग रहीं
विज्ञापन में अर्धनग्न
औरतों की तस्वीर
छप रही
समाज की संस्कृति
बाजार में आकर
बदल गयी
रुपए पैसों के सहारे
मीडिया में उनकी
देहयष्टि भावसंपदा की
कीमत तय हो रही
सागरतट पर
सुबह में लहरें
मचल रहीं
घर बाहर हर जगह
अब औरतें
तमाम तरह के
कारनामों में फंस गयी
पोर्न स्टार बन गयीं
फौज पुलिस शिक्षा
प्रशासन की
नौकरियों में जाने वाली
लड़कियां
यह सब देखकर
चुप हो उठीं
महानगरों में दे़र रात
चलने वाली पार्टियों से
निकलते
कार के दरवाज़े पर
आकर
गिर पड़ी
गली – गली में
ब्यूटी पार्लर से
निकलकर
युवतियां – लड़कियां
दमक रही
चांदनी चुप हो गयी
धूप ढल गयी
औरतों की हिफाजत
रात के इस चकाचौंध के
अलावा
थोड़े सुनसान
रास्तों में भी
जरूरी हो गयी
खेत खलिहानों में
काम करती औरतें
यह सब सुनकर
हंसने लगीं
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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