साहित्य लहर
कविता : हां मै पराया हूं

शिवांश राय, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
बदलते वक्त के साथ बदलता एक काया हूं,,
कोई नही अपना मेरा हां मै पराया हूं।।
बीत रहा ज़िन्दगी का हर एक पल मेरा,,
इस दूनिया से दूर हो जाऊंगा मै मोह-माया हूं।।
सौदेबाजी के बाजार से अब तक खुद को बचाया हूं,,
कुछ सपने अधूरे है, तो कुछ सपने पूराया हूं।।
लोग कांट बिछाकर मेरा इंतज़ार कर रहे,,
लेकिन मै शीतल पेड़ो की शीतल छाया हूं।।
सबसे हठके कुछ अलग मन मे बैठाया हूं,,
जो मज़ाक उड़ाते थे उनसे भी रिश्ता निभाया हूं।।
सबने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है मेरे,,
कोई नही अपना मेरा हां मै पराया हूं।।