साहित्य लहर
कविता : अनूठा व्यक्तित्व

डॉ.राजीव डोगरा
जो देखना चाहते हैं
मेरी तबाही का मंजर
उनको बता दूं
मैं सर्वदा बहने वाला हूं
पर तुम शाश्वत न रहने वाले हो।
जो देखना चाहते हैं
मेरी आंखों में आंसू
उनको बता दूँ
मैं इस आब-ए-चश्म में
डूब कर ही तैरना सीखा है।
जो देखना चाहते हैं
गम-ए-हयात में मुझे डूबता हुआ
उनको बता दूँ
इसी समुद्र में विजय की नौका पर
हर मंजिल फ़तह करना सीखा है।
जो देखना चाहते हैं
मुझे दूसरों के आगे नत हुआ
उनको बता दूँ
माँ काली के आगे सिर झुका कर ही
सिर उठाकर जीना सीखा है।
डॉ.राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश (युवा कवि लेखक)
(हिंदी अध्यापक)
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail.com