
कविता : आज दिवाली… बहुत विकल हो विनती की माता कैकेई को क्षमा करें। संकल्प अटल पुरुषोत्तम का व्याकुल हो भरत जी चले गए, भाई चरणों की चरण पादुका माथे पर चरण रज लगा लिया। सिंहासन पर चरणों को पूजा मर्यादा का निर्वहन किया, आ रहें हैं आज भरत भाई दीपों से नगर सजा देना। #डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर, बिहार
[/box]आ रहे हैं आज भरत भाई
दिवाली आज मना लेना,
तोरण द्वार बनवा लेना
रंगोली भी सजबा देना।
पिता के वचन निभाने को
माता के आदेश पालन को,
सियाराम के संग लखन भाई
वन-वन में गये भटकने को।
संदेश मिला जब भाई भरत को
व्याकुल हो गये अनुज प्रिय,
माता कैकेई पर क्रोधित हो
मंथरा को कभी न क्षमा किये।
राज-पाट सब त्याग दिया
लाने अग्रज को पहुंच गए,
बहुत विकल हो विनती की
माता कैकेई को क्षमा करें।
संकल्प अटल पुरुषोत्तम का
व्याकुल हो भरत जी चले गए,
भाई चरणों की चरण पादुका
माथे पर चरण रज लगा लिया।
सिंहासन पर चरणों को पूजा
मर्यादा का निर्वहन किया,
आ रहें हैं आज भरत भाई
दीपों से नगर सजा देना।