साहित्य लहर
कविता : खुशियों के धागे

राजीव कुमार झा
यह जीवन धन्य है !
सबको सोचने का बोलने का अवसर मिला है!
जीवन फूल की तरह खिला है!
आदमी हर जगह जिम्मेदारियों से घिरा है!
संघर्ष ही संघर्ष जीवन में छिड़ा है!
अंधेरे में सबके पास जलता दिया है!
सबने जीवन उधार यहां धरती से लिया है!
दुख की चादर को खुशियों के धागों से बुना है!
भगवान का नाम जीवन के अंत में जिसने सुना है!
यमराज के दरबार में अपनी आंखें उसी ने ठीक से मुंदा है!
हमारा नाम संघर्ष के पथ पर खुदा है!
मेरे साथ हर आदमी जीवन की जोत में जुता है!
बुझे चेहरों में भी जिंदगी का दिया जला है!
आदमी धूप में कितना भला है !
चारों तरफ जलजला है!
यह कैसा फलसफा है!
ग्रीष्म ने आकर क्या कहा है!
आदमी घर मेंपड़ा है !
मेले में सुनसान महल खड़ा है!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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