
सैनिक कवि गणपत लाल उदय
अजमेर, राजस्थान
बारिश ने आज मचा रखा है घर-घर में हाहाकार,
जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा मची है चित्कार।
ताल-तलैया भर गए सारे अब टूटने की है कगार,
रोड़ टूट गई खेत छिल गए बदला धरा-आकार।।
संकट में है सबका जीवन मचा हुआ है कोहराम,
आना-जाना बाधित है सबका बैठें आज नाकाम।
धंस गई ये धरा कहीं पर फट गया कहीं आकाश,
इन जलतरंगों को रोक लो अब तो प्रभु श्रीराम।।
डूब गयी हैं सड़कें सारी यह खेत एवम खलिहान,
दुर्लभ हुआ अन्न का दाना क्या खाएं यह इंसान।
दे रही दस्तक महामारी एवम दे रहा दरार मकान,
पानी-पानी है चारों और पर पी ना सके इंसान।।
निगल रहा है जो भी आए सामने इसके सामान,
बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा वृद्ध, बच्चा, जवान।
इस बारिश ने कर दिया फसलों का भी नुकसान,
बांध और नदियों में आ गया आज जैसे उफान।।
प्रकृति का यह कैसा करिश्मा सब व्यक्ति लाचार,
जान-माल को क्षति पहुंची करो प्रशासन विचार।
लिख रहा है आज यह रचना गणपत सृजनकार,
इंसानों की जान बचाओ करो रोगी का उपचार।।