कविता : जिंदगी का जादू
राजीव कुमार झा
रात का ठंडा मीठा पानी
किसके स्पर्श से
यह मन जब भीग जाता
आधी रात के पहले
इस पहर तब याद
आता
जाड़े के मौसम में
कड़ाही में
गर्म गुलाब जामुन की
मीठी महक से
हमारा भर उठा मन
गालों पर गुलाबी हंसी
छायी
पहली बार बांहों में
वह जब कभी आयी
उसके उरोजों के
आत्मीय स्पर्श का
सुख
याद आता कभी
तुम्हरे मन के
सुरीले गीत
गूंजते बारिश के
इसी मौसम में
शची को इन्द्र ने
सर्वस्व सुख से
भर दिया
तुम्हारे सुंदर उरोजों में
जिंदगी का जादू छिपा है
स्नेह से पुलकित
किसी का भीगा हुआ तन
यौवन से पुलकता
श्रृंगार की सरिता बना मन
रात्रि की एकांत वेला में
तुम रति इस पल बनी हो
अरी सुंदरी कामदीप्त
कोमलांगी इस उमर में
निर्वसन होकर विहंसती
अब रातभर तुम मुग्ध
होकर
चांद की रोशनी में
कितनी देर से
कसमसाती
सो गयी हो
कजरारी आंखों में
सुहाग का सुख
कमलिनी मकरंद से
महकते कपोलों को
सुबह नहाने के बाद
नदी की घाट पर
आकाश ने
जब देखा
रात भर किसने
इन उरोजों को टटोला
तुम्हारी गोरी जंघाएं
नितंबों को हथेलियों से
हम काफी देर तक
सहलाएं
तुम्हें जिंदगी भर
इसी तरह हर रात
बहलाएं
सुबह में हर दिशा को
देखकर इतराएं
सुंदर रोशनी से
भरा मौसम बुलाता
चांद आकाश में
रात का चेहरा दिखाता
संसार में जिंदगी सुख
सबसे सुहाना है
रतिसुख से रोज अब
तुमको भिगोना है.
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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