
कविता नन्दिनी
मेंढक ने थी भरी छलांगे
टर्र- टर्र कर पानी में
नानी को आवाज़ दिया था
उसकी ढली जवानी में।
नानी मुझको डर लगता है
बिछड़ गया यदि पानी में
सब मुझको कैसे खोज़ेंगे
भरे बाढ़ के पानी में।
यहाँ-वहाँ हम ठाँव बदलते
नहीं कहीं घर पानी में
कैसे हम-सब साथ गुज़ारें
हँसी – ख़ुशी मनमानी में।
नानी मुस्काती बोली थी
मत रहना हैरानी में
पत्ता बड़ा देख ही चढ़ना
मत बहना नादानी में।
ऐसा गुण नाना में भी था
ऐसा गुण था नानी में
घर में ऐसा मज़ा कहाँ है
जो मिलता है पानी में।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »कविता नन्दिनीकवयित्रीAddress »सिविल लाइन, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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