
गणपत लाल उदय, अजमेर, राजस्थान
आज आसमानी उस चांद ने मुझे बहुत तड़पाया,
रोज़ाना जो जल्द आता, आज वक्त पर न आया।
पांव में पाजेब, हाथ में चूड़ी, ये मेहन्दी मैंने रचाया,
ऑंख लगाए बैठी रही, ये इंतजार खूब कराया।।
क्यों करते हो हर बार ऐसा करवा चौथ की शाम,
भूखी-प्यासी रहकर गृहणियां लेती तुम्हारा नाम।
बहुत नाज़ुक है जीवन की डोर, जरा हमको थाम,
प्रेम से नीर पिलाए साजन, आए अच्छे अंजाम।।
दीया जलाओ मेरे हृदय में, होगा आपका उपकार,
निर्जल व्रत रखकर मैंने किया, जिसको स्वीकार।
सज-धजकर बैठी हूं मैं आज, बनकर नवेली-नार,
ख्वाहिश तप में ना जलाओ, स्वप्न करो साकार।।
चली लेखनी आज हमारी, देखकर नारी की दशा,
कैसे अपने दिल को समझाए, क्या है चाँद मंशा।
ढल रही रात, बढ़ा अंधेरा, करो खुशियों की वर्षा,
गुजर रहा है लम्हा-लम्हा, हमको न अब तरसा।।
जुग-जुग जिए यह जोड़ी हमारी, ऐसा दो वरदान,
महक उठे घर-घर का आँगन, बने ऐसी पहचान।
हँसी-ख़ुशी संग बीते जीवन, न आए कोई रुझान,
सपने सबके हो साकार, व बढ़े साजन सम्मान।।