साहित्य लहर

कविता : अपनों का छोटा सा संसार “परिवार”

कविता : अपनों का छोटा सा संसार “परिवार”, मिलजुल करते सब काम ऊंचा करते कुल का नाम कहलाता है परिवार। प्रेम,धैर्य,विश्वास,सहयोग परिवार का स्तंभ आधार इसके बिना बनता नही परिवार। परिवार है समाज का छोटा ढांचा इसके बिना समाज नही बन पाता। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

अपनों का छोटा सा संसार
रक्त संबंध जिसका आधार
कहलाता है परिवार।

स्नेह का खुलता जहां द्वार
मिलता है अपनत्व अपार
कहलाता है परिवार।

एक-दूजे की बाहें थाम
रहते सब जीवन भर साथ
कहलाता है परिवार।

सही-गलत का मिलता जहां ज्ञान
भले- बुरे की भी होती है पहचान
कहलाता है परिवार।

सुख-दु:ख में आते सब काम
करते सब कर्म, फर्ज जान
कहलाता है परिवार।

मिलजुल करते सब काम
ऊंचा करते कुल का नाम
कहलाता है परिवार।

प्रेम,धैर्य,विश्वास,सहयोग
परिवार का स्तंभ आधार
इसके बिना बनता नही परिवार।

परिवार है समाज का छोटा ढांचा
इसके बिना समाज नही बन पाता।

कविता : समाज की छोटी इकाई “परिवार”


कविता : अपनों का छोटा सा संसार "परिवार", मिलजुल करते सब काम ऊंचा करते कुल का नाम कहलाता है परिवार। प्रेम,धैर्य,विश्वास,सहयोग परिवार का स्तंभ आधार इसके बिना बनता नही परिवार। परिवार है समाज का छोटा ढांचा इसके बिना समाज नही बन पाता। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

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