कविता : शाम की खामोशी

राजीव कुमार झा
सितारों की टिमटिमाहट से पहले
शाम की खामोशी में तुम्हारे मन की
झील में सूरज डूब जाता
नदी का जल यहां ठहरकर
गहराने लगता आकाश की अनंतता में
माया का यह खेल सुबह की झिलमिल
रोशनी में हर घर के आंगन में
गुलज़ार हो जाता आदमी सपनों के
संसार से बाहर जिंदगी की धूप छांव में
विचरने लगता भोर का तारा चमकता
सुबह में सूरज निकलता
अरी सुंदरी! रोज तुम्हारी सांसों में
कोई हराभरा जंगल उमगता
यहां फूल खिलते नदी के किनारे
सब तुम्हें देखते नदी की धारा में विहंसते
प्रेम की बारिश में किरणों के संग थिरकते
जिंदगी की सूनी गलियों में बहार छायी
शरद की रात में चांदनी के पास तुम आकर
अब मुस्कुरायी शाम की राह में भटकती चिड़िया
घोंसले में आयी रात अब खामोश होकर
शाम की चुप्पी में खो गयी
अरी सुंदरी मूसलाधार बारिश में तुम सो गयी
कोई बहता जल दुपहरी में याद आता
आदमी अपनी आत्मा में जब पैठा अकेला गीत गाता
शाम की सुनहली किरन तुम मुस्कुराती
अंधेरे से पहले सितारों को बुलाती
रात की बांहों में हवा कसमसाती
घर का कोई रास्ता सबको बताती
आंगन का उजियारा सूरज दरवाजे पर
कितनी धूप लेकर आया
धरती का दामन सबको सुहाया
तुमने कहां आकाश को मन में छिपाया
रोशनी में नदी ने गीत गाया
सुबह में पेड़ की डालियों पर कोई आकर गुनगुनाया
कलियों ने फूलों को हंसकर बताया
अब शाम हो गई है!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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