
कविता : रूप चतुर्दशी/नरक चतुर्दशी… इस-रोज़ भूलकर भी कोई घर अकेला ना छोड़े, मिट्टी के दीपक और हीड कुम्हार से लेकर रखें। छोटी दिवाली आज है और यें दिन भी है ख़ास, मुख्य गेट के दोनों और तेल दीप जलाकर रखें। दक्षिण दिशा की तरफ़ चौदह दीप जलाएं जाते, यम देवता की पूजा कर धूप अगरबत्ती जलाते। अकाल मृत्यु से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ हम पातें… #गणपत लाल उदय, अजमेर, राजस्थान
[/box]दिवाली के एक दिन पहले आती छोटी दिवाली,
रूप चतुर्दशी नर्क चतुर्दशी कहते चौदस काली।
नरका पूजा के नाम से भी जानते है हम इसको,
चौमुखा दीप रोली गुड़ खीर से सजाते है थाली।।
इस दिन सायं के समय चारों तरफ़ दीप जलाते,
विधि विधान से कृष्ण भगवान का पूजन करते।
कई कथाएं है प्रचलित इस पर प्राचीन समय से,
नरकासुर का वध भी कन्हैया इस दिन किये थे।।
इसदिन जो भी हरि विष्णु का व्रत पूजन करता,
अपनें आपको स्वस्थ रुपवान वह व्यक्ति पाता।
हर वर्ष ये कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष में आता,
जो धूम-धाम हर्सोल्लास के संग मनाया जाता।।
इस-रोज़ भूलकर भी कोई घर अकेला ना छोड़े,
मिट्टी के दीपक और हीड कुम्हार से लेकर रखें।
छोटी दिवाली आज है और यें दिन भी है ख़ास,
मुख्य गेट के दोनों और तेल दीप जलाकर रखें।।
दक्षिण दिशा की तरफ़ चौदह दीप जलाएं जाते,
यम देवता की पूजा कर धूप अगरबत्ती जलाते।
अकाल मृत्यु से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ हम पातें,
कई परम्परा के संग-संग नरक चतुर्दशी मनाते।।
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