
पिया के पास आकर शहर में अब रहती अकेली सुबह दस्तक देती रात के प्यार की झील में नयी नवेली सतरंगी सूरज की किरणें मृदुल मुस्कान से ओस से भीगी हुई धरती खेतों में कट चुका धूप में पककर पीला धान यहां हरी भरी धरती, #राजीव कुमार झा
[/box]सागर में समाता
नदी का प्यार
सुबह सूरज देखता
आकर
तट पर यहां फैले हुए
जंगल
थोड़ी दूर आगे
गांव, कस्बे, बस्तियां
वीरान रातों में
तुम्हारी मुस्कान
अरी सुंदरी!
सितारों से सजा
यह आसमान
तुम नीलिमा सी सजी
संवरी
सुबह में पक्षियों का
गान
मधुरिम प्रात में उठकर
अकेली
कार्तिक का स्नान
यह मौसम का
नया मेला
समुद्र के किनारे
जाड़े की धूप में
गोवा में सैलानियों का
रेला
अरी सुंदरी
याद आती हो
गरबे के नृत्य में
झूमती हंसती
यहां हल्की शीत से
भरी शाम
रात में देर तक
गीतों के बोल पर
थिरकती रहीं लहरें
पिया के पास आकर
शहर में अब रहती
अकेली
सुबह दस्तक देती
रात के प्यार की
झील में नयी नवेली
सतरंगी सूरज की
किरणें
मृदुल मुस्कान से
ओस से भीगी हुई
धरती
खेतों में कट चुका
धूप में पककर पीला
धान
यहां हरी भरी धरती
सुख शांति की नींद में
सोई
ठंड से घिरे आकाश में
चांद को देखकर हंसती
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