कविता : हे सरस्वती मां

सुनील कुमार माथुर
हे सरस्वती मां !
एक बार फिर से कोरोना ने दस्तक दी है
इस बार यह नाम बदल कर आया है
कोरोना की जगह ओमिक्रान बनकर
कोरोना एक बार फिर से आया है
हमने नये साल के साथ
अनेक नये संकल्प लिये थे और
कोरोना ओमिक्रान बनकर आया और
फिर से कक्षा एक से आठ तक की
इसने स्कूले बंद करा दी
हे सरस्वती मां
आप तो ज्ञानी हो
इस कोरोना को भगाइये और
हमें हमारा अध्ययन करने दीजिए
नालायक इस कोरोना उर्फ
ओमिक्रान की खातिर
हम सब बच्चों की पढाई चौपट हो रही हैं
हे सरस्वती मां !
तुम इसे ऐसा सबक सीखा दीजिए कि
यह भविष्य में भारत की ओर रुख न करें
कोरोना क्या इसकी सात पीढ़ी भी
भारत की ओर आंख उठाकर न देख सके
हे सरस्वती मां !
कहीं ऐसा न हो कि इस बार भी
हमें जबरन पास किया जाये और
जो पढा – लिखा वह सब
गुड – गोबर हो जायें और
प्रतिभाएं पिछड जाये
उनका ज्ञान धरा का धरा रह जाये
हे सरस्वती मां !
इतनी तो दया कीजियें
कोरोना को तुम भगा दीजिए
अन्यथा
शिक्षा के इन पावन मंदिरों का
इस धरा पर कोई औचित्य नहीं है
जिस देश में शिक्षण संस्थान बंद हो
भला उस राष्ट्र का उत्थान कैसे होगा
हे सरस्वती मां !
आप तो स्वंय ज्ञानी है
मैं तो इस संकट की घडी में
बस आप से विनती ही कर सकता हूं
हे सरस्वती मां !
कोरोना से इस देश को बचा लिजिए
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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Bahut sunder rachna
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