कविता : नववधू
राजीव कुमार झा
शरद की रात में
चांद ने पहनाया
धरती के गले में
जीवन की माला
चारों ओर फैला
काफी सुंदर उजाला
कहां जाती
बहती नदी की
धारा
रात की रोशनी में
आज सूरज
चांद से हारा
अरी सुंदरी
तुम पहनकर
सदा मुस्कुराती
सितारों की
माला
नदी पहाड़ जंगल
अब हर तरफ
चांदनी फैली
सुबह सूरज की
किरने
सभी दिशा में
छा गयीं
सुबह में धरती
नदी के किनारे
हंसती बनी मटमैली
अरी प्रिया
तुम चांदनी रात में
सारी दिशाएं
तुम्हें निहारती
यह रात नववधू सी
सजी संवरी
आज सागर में
समायी
नदी की धारा
सारे रंगों को समेटे
बहती यहां इकहरी
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¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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