
राजीव कुमार झा
तुमसे फेसबुक पर
मुलाकात हुई
अब हम दोनों
कल से दोस्त बने हैं
अभी रोज
अपनी भेंट
मुलाकातें होंगी
तुम मेरी कविता
रोज पढ़ोगी
और शायद खूब
हंसोगी
कविता में
जिंदगी की
अनुभूतियों के
रंग
समाये होते
हम प्रेम का बीज
सुबह में
उठकर बोते
अपने मन की
धारा में
कल्मषता के भावों को
कलकल बहती धारा में
फिर धोते
सपनों में सबको
पास बुलाते
कहीं अकेले जब भी
तुमसे होते
अरी सुंदरी
तुम यादों में
उसी पहर से
बसी हुई हो
सूरज जब से डूबा है !
जाग रहा संसार
चुप्पी में खोया
घर द्वार
आंगन में
आधी रात में
हंसता निकला चांद
हवा का इसी पहर
गूंज रहा वह गान
अरी सुंदरी
बलखाती नदिया की
धारा
सुबह में बहती
घर के बाहर आयी
यह कितना
मटमैला पानी
आज रात बनी
सयानी
भादों की रात
सुहानी
आसमान से
खूब झमाझम
पानी बरसे
अरी सांवरी!
सागर की सीमा
नील गगन है!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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