कविता : कोई बात नहीं
कविता : कोई बात नहीं, उनके रोशन हुए चिराग कोई बात नहीं, दीपक है अंधेरे में कोई बात नहीं, वो कौन सी हवा का झोंका था इस तरफ, पत्ते अलग या शाख कोई बात नहीं। अजय एहसास, अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)
गर टूट जाए दिल तो कोई बात नहीं
पैमाना छूट जाए कोई बात नहीं
हाथों से उसकी उंगली छूटने का है ये दर्द
बदली नहीं लकीर कोई बात नहीं।
मिन्नतें हुई ना पूरी कोई बात नहीं
मोहब्बत रही अधूरी कोई बात नहीं
वो दर्द सितारों के टूटने का एक तरफ
है जिद जो हवाओं की कोई बात नहीं।
उनके रोशन हुए चिराग कोई बात नहीं
दीपक है अंधेरे में कोई बात नहीं
वो कौन सी हवा का झोंका था इस तरफ
पत्ते अलग या शाख कोई बात नहीं।
जुल्फों में है गुलाब कोई बात नहीं
खुश हो रहा महबूब कोई बात नहीं
है बागबां को वो गुलाब टूटने का दर्द
दिल तोड़ा है किसी का कोई बात नहीं।
ना मैसेज का रिप्लाई कोई बात नहीं
वो रात भर रुलाई कोई बात नहीं
मैसेज और कॉल सब ही ब्लॉक कर दिए हैं अब
है बोलचाल बंद कोई बात नहीं।
किस्मत की है ये मार कोई बात नहीं
अब हम गए हैं हार कोई बात नहीं
शुरुआत की थी तुमने और अंत भी किया
गलती तुम्हारी ही थी कोई बात नहीं।
पहले ही तुम हो बोला कोई बात नहीं
तुम ही हो आखिरी भी कोई बात नहीं
फिर दूसरे और तीसरे आ टपके कहां से
जब राज ये खोला तो कोई बात नहीं।
सब मेरा है गुनाह कोई बात नहीं
इक तू ही बेगुनाह कोई बात नहीं
गलती है तू ही करती गुनहगार बने हम
तोहमत लगाया हम पे कोई बात नहीं।
सब भूल गए वादे कोई बात नहीं
जैसे भी थे इरादे कोई बात नहीं
जब ढूंढ लिया तुमने किसी और यार को
मर जाए मेरी रूह कोई बात नहीं।
अब मर गई है नींद कोई बात नहीं
आंसू गए हैं सूख कोई बात नहीं
‘एहसास’ हो गया है मोहब्बत में दोस्तों
हो जाती नफरतें हैं कोई बात नहीं।
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