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साहित्य लहर

कविता : मेरे पापा मेरा अभिमान

 मेरे पापा मेरा अभिमान, गलतियों पर देते हमें डांट, करते फिर वो स्नेह- दुलार, मेरे पापा मेरा अभिमान। खुद सहते वो कष्ट अपार, हम पर न आने देते आंच, मेरे पापा मेरा अभिमान। ईश्वर का है अनुपम वरदान, रौशन जिनसे मेरा घर-द्वार, मेरे पापा मेरा अभिमान। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर-प्रदेश

खुशियों के खातिर हमारी
खुशियां अपनी देते त्याग
मेरे पापा मेरा अभिमान।

पूरी करते मेरी हर मांग
रक्षा करते बनकर ढाल
मेरे पापा मेरा अभिमान।

सपनों के खातिर हमारे
अपने सपने देते त्याग
मेरे पापा मेरा अभिमान।

गलतियों पर देते हमें डांट
करते फिर वो स्नेह- दुलार
मेरे पापा मेरा अभिमान।

खुद सहते वो कष्ट अपार
हम पर न आने देते आंच
मेरे पापा मेरा अभिमान।

करें योग रहें निरोग

ईश्वर का है अनुपम वरदान
रौशन जिनसे मेरा घर-द्वार
मेरे पापा मेरा अभिमान।

पापा मेरे जीवन का आधार
हम पर है पापा का उपकार
भूल नहीं सकता कभी
पापा का वो स्नेह-दुलार।


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 मेरे पापा मेरा अभिमान, गलतियों पर देते हमें डांट, करते फिर वो स्नेह- दुलार, मेरे पापा मेरा अभिमान। खुद सहते वो कष्ट अपार, हम पर न आने देते आंच, मेरे पापा मेरा अभिमान। ईश्वर का है अनुपम वरदान, रौशन जिनसे मेरा घर-द्वार, मेरे पापा मेरा अभिमान। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर-प्रदेश

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