कविता : जगत जननी भू-माता
कविता : जगत जननी भू-माता, ग्वाल बालों के साथ रास रचाते हैं। कभी गैया चराते है। कभी छेड़ते हैं राधा को राधा की सखियों को। अपना करतब दिखाते है स्नेह दिखाते है मुरली बजाते हैं। राही शर्मा की कलम से…
जननी तेरी ममता के आगे ईश्वर
भी नतमस्तक हो जाते हैं।
तेरी आंचल का सुख पाने के लिए
देवलोक से भूलोक में आते हैं।
छम छम पांवों में पहन पैजनियां
अठखेलियां करते हैं इतराते हैं।
देख तेरी मनमोहक छबि
खुशी से झूम जाते हैं।
भरपूर जीवन का आनंद
आपकी गोद में उठाते है।
इतना सुंदर सबके मन को
मोह जातें हैं।
ग्वाल बालों के साथ
रास रचाते हैं।
कभी गैया चराते है।
कभी छेड़ते हैं राधा को
राधा की सखियों को।
अपना करतब दिखाते है स्नेह
दिखाते है मुरली बजाते हैं।
आंनद की गंगा बहाते हैं
फिर कही जाकर दुश्मनों का
खात्मा करते हैं।
धरा को शत्रु विहिन करते हैं
लोगों को सुख पहुंचाते है।
इस तरह अपने कर्तव्य
पुर्ण करते हैं निभा जाते हैं।
फिर भी मां के आंचल को
छोड़कर नहीं जातें हैं।
देवगण दूत भेजते हैं
संदेश भेजते हैं।
तब कहीं जाकर प्रस्थान करते हैं
ईश्वर भी कमाल करते हैं।
मां के चरणों को चूमते हैं
नतमस्तक हो जाते हैं।
फिर भारी मनसे भूलोक से
देवलोक चले जाते हैं।
इस तरह ईश्वर भी
आवागमन करते हैं।
बार बार पृथ्वी पर
आते और जाते हैं।
सुख उठाते हैं सुख देते है
और सुख लेकर जाते हैं।
फिर आनंद की वर्षा करते हैं
खुशियां मनाते है।
मां के चरणों में फूल बरसाते हैं
इस तरह ईश्वर भी वसुंधरा से
खूब प्यार करते हैं।
और जल्द ही भूलोक में आने का
इंतजार करते हैं।
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