कविता : नदी की धारा की तरह..!

राजीव कुमार झा
जिंदगी का अर्थ ढूंढ़ती
कविताएं
अनर्थ के बारे में अक्सर
बातचीत करते
कागज के फलक पर
समाज का सच्चा चित्र
उकेरती
मनुष्य की आत्मा में
जाकर
ठहर जाती हैं
रामायण और महाभारत
महाकाव्य हैं .
काव्य कविता का
आदिरूप है!
अब कविता मुक्तक
बन गयी
और सप्तक होकर
जिंदगी के अर्थ को
विस्तार देने में संलग्न
हो रही
कालिदास
कविकुलगुरु हैं .
कविता में
संस्कृति और सभ्यता के
विकास की गाथा
समायी है !
इसमें जिंदगी का रंग
नदी की धारा की तरह
निरंतर बहता .
कवि अपनी
आत्मा की याद में
रोज किस्से कहानियां
गढ़ता !
ईश्वर की प्रेरणा से
इसमें जीवन का
संगीत रचता . कविता में
जिंदगी की लय
इसकी धुन समायी है !
आज इसकी ताल पर
किस प्रेम मंडप में
कोई सुंदरी
नाचने आयी है !
सन्नाटा फ़ैला है
गर्म हवा बह रही
घुंघरुओं की आहट में
किस जंगल में
अब मन के भाव जगते
किसी सूखी नदी की
तरह
कविता को सबने
यहां देखा बहते
सूरज रोज निकलता
कविता का हिमालय
तब धूप में पिघलता
बरसात का मौसम
अकेला चला आया
ग्रीष्म पानी के उमड़ते
धार में समाया
कविता ने सबका
दुख दर्द दूर – दूर जाकर
सुनाया
विपत्ति में एक – दूसरे की
तरफ
अपना हाथ बढ़ाया
कविता जिन्दगी के
सार्थक भाव से
यहां संसार को रचती
इसलिए वह रोज
अपना आकार गढ़ती
सुनसान में भी बहती
अरी सुंदरी !
यह सदा तुम्हारे
साथ रहती
नृत्य से पहले
तुम जब श्रृंगार करती
अंधेरे में रोशनी
धूप की तरह
किरणों के संग
सुबह निकलती
कविता दिनभर
जिंदगी के बियाबान में
भटकती !
कभी कवि को
अकेले मन की बात
कहती
और खुद को रचती
कवियों ने कविता को
भावों से सजाया
उसके उचाट होते
मनप्राण को
रससिक्त करके बचाया !
अनगिनत अलंकार से
भाव विचार की नदी को
बहाया!
कविता कला के रूप में
जीवन की अनिंद्य सुन्दरी है
यह वसंत के मौसम में
सुरभित मंजरी है
अरी सुंदरी !
तुम क्या हो
कविता हो
वनिता हो
सविता हो
नदी किनारे
छायी उदिता हो
या प्रेम पयोधि में
रस से भरी
मुदिता हो!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() |
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
---|