साहित्य लहर
कविता : जंगल

धरती का रंग बना मटमैला खुशबू तो फूलों से आती घर की मुंडेर पर आज जलाओ दिवाली की दिया बाती नदी किनारे जंगल को कस्तूरी महकाती #राजीव कुमार झा
कस्तूरी की गंध
महकती
हिरनी उसे ढूंढने
कड़ी धूप में
मारी मारी फिरती
इसे देखकर चिड़िया
हंसती
वह सूरज को
हंसकर कहती
सुबह यहां उजाला
फैला
धरती का रंग बना
मटमैला
खुशबू तो फूलों से
आती
घर की मुंडेर पर
आज जलाओ
दिवाली की दिया बाती
नदी किनारे
जंगल को कस्तूरी
महकाती
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