साहित्य लहर
कविता : होली

डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर, बिहार
होली आई होली आई
खुशियां भर के झोली लाई,
एक दूजे को अबीर लगाते
समरसता का भाव जगाते।
मन भावन पकवान हैं खाते
मिल-जुलकर सब होली गाते,
बड़ों के पांव गुलाल चढ़ाते
बुजुर्गो का आशीष पाते।
होली है त्योहार खुशी का
नाचों गाओ ख़ुशी मनाओ,
एक दूजे को गले लगाओ
पुआ और दही बाडा खाओ।