
रूपेश कुमार
चैनपुर, सीवान, बिहार
शीतल हिमालय की ऊँचाई से आई माँ,
शैलसुता रूप की रानी कहलाई माँ तू।
गौरवर्ण अंग, कमल-सी कांति की देवी,
नेत्रों में बसी मधुर प्रेमभांति की क्रांति तू।
कुंतल लहराते चंदन से कोमल माँ तू,
माथे पर चंद्र शीतल सी निर्मल है माँ तू।
श्रृंगार से सज्जित अनुपम सवारी करती,
वृषभ पे सवार छवि अत्यंत प्यारी माँ तू।
गले में दमकती मोतियों की माला है,
कर में त्रिशूल, पर कोमलता निराला है।
कनकाभ वस्त्रों की आभा अनोखी है,
छवि देख लजाए चंद्र, दृष्टि भी रोके।
अलता रचे पाँव, नूपुर की झंकार है माँ,
तेरे पदचिन्ह बिखेरें दिव्य विस्तार है माँ।
गंध-पुष्प सी देह से बहती अनोखी सुगंध है,
माँ, तेरी महिमा, अगोचर, अनंत छंद है।
कांतिमयी, शांतिमयी, स्वरूप है प्यारा माँ,
नयनाभिराम, मन को सहलाने वाला सहारा।
साक्षात सौंदर्य की तू देवी है महान न्यारा,
दुष्टों की काल, भक्तों का त्राण हारी है माँ।
नवचेतना की प्रथम किरण है तू माँ,
प्रेम, सौंदर्य, श्रद्धा की धरण है तू माँ।
श्रृंगार में भी तू योगिनी महान लगती तू,
शिव की वामांगी, जग की पहचान है तू।