साहित्य लहर
कविता : आज़ाद पुरुष

कविता : आज़ाद पुरुष, सत्ता सत्ताधारियों की नहीं सत्ता को अजमाने वालों की सदा होती आई है। खुद की अजमाईस कर खुद की एक सत्ता ज़रा एक बार बनाना सीखो। उठो देश के लोगो खुद के अंदर के सत्य पुरुष को ज़रा एक बार पहचानो। #डॉ.राजीव डोगरा, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
उठो देश के लोगों
खुद के अधिकारों को
ज़रा एक बार पहचानो।
निकलकर झूठे किरदारों से
खुद के व्यक्तित्व को
ज़रा एक बार निखारो।
सत्ता सत्ताधारियों की नहीं
सत्ता को अजमाने वालों की
सदा होती आई है।
खुद की अजमाईस कर
खुद की एक सत्ता
ज़रा एक बार बनाना सीखो।
उठो देश के लोगो
खुद के अंदर के सत्य पुरुष को
ज़रा एक बार पहचानो।
आज़ाद पुरुष की तरह
सत्य के लिए एक बार
ज़रा जीवन जी कर देखो।
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