साहित्य लहर
कविता : भूले बिसरे दिन
कविता : भूले बिसरे दिन, अजनबी को दोस्त जाना आज अपना मतलब निकाल कर वह तुम्हें छोड़ कर अपना घर चलता बना उसकी यादों में खोया तुम्हारा मनअब अक्सर डसने लगा मेरे प्यार की यादें #राजीव कुमार झा
दोस्ती में तुमने
किसी बात का ख्याल
उसके साथ कभी नहीं
रखा
अपने मन की मर्जी से
तुमने उसे दोस्त माना
अजनबी को दोस्त जाना
आज अपना मतलब
निकाल कर
वह तुम्हें छोड़ कर
अपना घर चलता बना
उसकी यादों में खोया
तुम्हारा मन
अब अक्सर डसने लगा
मेरे प्यार की यादें
भूली बिसरी बातें
सबके गिले शिकवों में
समा जाती
बांहों में तुम्हारी हंसी
याद आती
बिजली चमक जाती