साहित्य लहर

कविता : भगवान मत बन

सुनील कुमार माथुर

धर्म कर्म में इंसान लगा तो
हर कोई उससे जलने लगा
कहने लगे कि देखों
घर में पूजा होती नहीं
भगवान बनने वो मंदिर चलें
उन नास्तिकों को कौन समझायें कि
ईश्वर मंदिर में नहीं बसते है
वे तो हमारे हृदय में बसते है
मंदिर तो हमारी आस्था के केन्द्र हैं
पूजा का स्थल हैं
यह तो उस परमसता की गोद हैं
जहां आने से मन को अपार
शांति की प्राप्ति होती हैं
किसी की ईश्वर के प्रति भक्ति देखकर
जब अपने ही जलने लगें, ईर्ष्या करें
और
प्रभु के सच्चे भक्त पर
व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि
भगवान मत बन
उन नास्तिको से कोई पूछें कि
हमें भगवान नहीं बनना है
हमें तो बस उसके चरणों में जगह चाहिए
उसकी कृपा दृष्टि चाहिए
बस वो भक्त का हाथ थाम लें
बस हमें इतना ही चाहिए
हम क्यों बनें भगवान
भगवान तो स्वंय भक्त बनना चाहते हैं चूंकि
आशीर्वाद से ही तो इंसान फलता फूलता हैं
हम तो प्रभु की भक्ति कर रहें है लेकिन
तुम्हें इतनी ईर्ष्या क्यों ?


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

Address »
33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

15 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights